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________________ ६५८ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति समतानुं तत्त्व गमाइ गयुं छे अने आपणे बधा प्रांतवासी, एक भारतवासी छतां भाषादृष्टिए खंड खंड थइ गया छीए. २२७ जे वखते प्रांते प्रांतना लोको यात्रानिमित्ते, प्रवासनिमित्ते, व्यापारनिमित्ते निरंतर भेगा थता हता, गुजरातना वणजारानी पोठो नीचे ठेठ रामेश्वर सुधी अने ऊपर ठेठ काबुल सुधी जती हती; तथा पूर्वमा मणिनगर सुधी पहोंचती हती, तेम दक्षिणना, पूर्वना अने उत्तरना वणजारानी पोठो आखा देशने वृंदी वळती हती अने गामेगाम महिनाना महिना सुधी पडावो पडता हता. जे वखते भारतीय नीजामाओ भारतना प्रत्येक जळमार्गो द्वारा भारतमा बधां बंदरोमां पहोंची शकता हता, काशीविश्वनाथनो यात्री गंगाजळनी कावड खांधे उपाडी ठेठ रामेश्वरसुधीनो मार्ग पगे कापतो हतो, मोटा मोटा जैनसंघो पगपाळा पार्श्वनाथपहाड सुधीनी यात्रा करता हता अने सर्व संप्रदायना त्यागीओ पगे चाली चालीने गामेगाम भारतीय संस्कृतिनो घोष गजवता हता ते वखते आपणा आखा. देशमां लगभग एक जेवी बोली प्रर्वतती हती. __ वळी, आपणा मोटा पुरुषो पण लोकव्यापक भाषामा ज पोतानो व्यवहार चलावता हता, तेओ संस्कृतादिभाषाना प्रखर पंडितो हता छतां लोकव्यापक भाषा ऊपर तेमनो असाधारण अधिकार हतो, अने तेने लीधे ज भारतीय ग्रामजनता साथेनो तेमनो संसर्ग अखंड रह्यो हतो. २२८ ज्यारथी आ बधुं छिन्न-भिन्न थयु, प्रांतप्रांतनो व्यवहार तूटी गयो अने पंडित लोको संस्कृतप्रिय ज बनी बेठा, त्यारथी भाषानी एकता तूटी अने नगर तथा ग्राम बच्चे- एकतानुं सूत्र पण तुट्यु. मोटी मोटी राज्यक्रांतिओ, राजा अने प्रजामां धननुं सर्वोपरि प्राधान्य, राजाओनी धर्मांधता, प्रजामां स्वरक्षणना सामर्थ्यनो अभाव, पथ्यवाणीनुं पाणी सिंचनारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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