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________________ उपसंहार ६४५ शकुं छं के पद्य करतां गद्यसाहित्य, भाषाना बंधारण, घडतर अने नानाविध प्रयोगोनो वधारे स्पष्ट ख्याल आपी शके छे. पद्यमां तो कवि, कविताना कारणे भाषाना प्रयोगो ऊपर पोतानो स्वच्छंद पण चलावी शके छे अने तेने लीधे (जन ) ' जन्न' (सनातन ) ' सनातन्न' जेवा विलक्षण प्रयोगो पेदा थाय छे; त्यारे गद्यमां तेम करवानुं स्थान ज नथी. तेमां तो भाषानो स्वाभाविक सरल प्रवाह वये जाय छे तेथी ते ते समयनुं अकृत्रिम गद्य भाषा विशे विशेष स्पष्ट समझ आपे छे. पन्दरमा सैकाना एकंदर छ नमूनाओने अहीं रजू करेला छे. चार गद्यना छे अने बे पद्यना छे. आ सैकानी भाषानां नामरूपो, क्रियापदो, सर्वनामो, कृदंतो अने बीजा अनेक शब्दोनुं निदर्शन करावीने पन्दरमा सैकानी भाषानो सविशेष परिचय आपेलो छे तथा जैन अने जैन नहीं एवा कविओनी भाषामां कशो य भेद नथी एवी स्थापित हकीकतने स्पष्टतापूर्वक वधू वीगतथी रजू करेली छे. वळी, आगळ कह्या एवा 'बाल-शिक्षा' जेवा 'मुग्धावबोध औक्तिक' ( कुलमंडन ) - मांथी पण बीगतवार ऊतारो मूकेलो छे तथा कुलमंडनना ज गुरुभाई श्रीगुणरत्नसूरिए रचेला क्रियारत्नसमुच्चयमांथी पण उपयुक्त भाग ऊतारी क्रियापदो अने तेनां भूतकाळ वगैरे भिन्न भिन्न काळमां थतां भिन्न भिन्न रूपो संबंधी माहिती आपेली छे. आगला सैकाओ करतां आ सैकानी भाषानी चर्चाए विशेष स्थान रोकेलुं छे. २१६ सोळमा सैकानी पांच कृतिओनो अहीं उपयोग करेलो छे. एमां एक, जैन कवि लावण्यसमयनी छे अने बीजी चार अनुक्रमे नरसिंह, पद्मनाभ, भीम ( बीजो ) अने कवि मांडणनी छे. आ बधी कृतिओमांथी नाम वगेरेनां निदर्शनो आपी सोळमा सैकानी भाषानुं स्वरूप समझमां आवे ते ते चर्चा करेली छे. लावण्यसमये संस्कृतनी जेवा मालिनी वगेरे छंदो वापरेला छे तेना पण थोडा नमूना आप्या छे. सोळमा सैकाना कवि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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