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________________ उपसंहार ६४१ सुनत, ओमराओ वगैरे शब्दो ए जातना छे. एवा परदेशी शब्दो अढारमी सदीनी कृतिमां प्रसंगवशात् थोडा वधु वपराया छे. अहीं जणावेली कृतिओनी अभिधेयवस्तुनो परिचय विशेषपणे कराव्यो नथी, तेम तेनो सार पण चालु गुजरातीमां आप्यो नथी, अहीं मात्र एक व्याकरणसापेक्ष शब्ददृष्टिनी प्रधानता होवाने लीधे आगळना व्याख्यानोमां एवं आपेलुं नथी. तेम छतां मने लागे छे के परिमित शब्दोमां अमुक अमुक कृतिओनो सारभूत परिचय अहीं उपसंहारमां आएं तो अस्थाने नथी. २११ अहीं सर्व प्रथम आपेली बारमा सैकानी अभयदेवनी कृतिमां जैन परंपराना वीशमा तीर्थंकर श्रीपार्श्वनाथ भगवाननी स्तुति छे. तेमां एक साचा भक्तनी जेम स्तुतिकारे पोतानी दीनता प्रगट करेली छे. अने ते दीनताने मटावा परमेश्वर पोतानी सहाये आवे एवी मागणी पण अनेक ते जणावेली छे. कृतिओनुं अभिधेय बीजी कृति वादी देवसूरिनी बनावेली तेमना गुरुनी स्तुतिरूप छे. तेमां गुरुनो महिमा अने जेमनी स्तुति छे ते पुरुषनो संयमविषयक, ज्ञानविषयक अने साधुतासंबंधी प्रकर्ष वर्णवेलो छे. त्रीजी कृतिमां हेमचंद्रना आठमा अध्यायना चोथा पादमांना केटलाक दोधको छे, अने तेमना छंदोनुशासनमांनां पण केटलांक पद्यो छे. ए धां पद्यमा केलांक तो हेमचंद्रनां पोतानां छे अने वधारे भाग लोकप्रचलित पद्योनो छे. त्रीजी कृति, आगली बे करतां विशेष लांबी राखी छे. आगली बेनो विषय मर्यादित होवाथी तेनी भाषाघटना पण मर्यादित होय त्यारे श्रीजी कृतिनो विषय तद्दन लौकिक - लोकव्यापक छे, एथी एनी भाषाघटना द्वारा ते समयनी गुजरातीनो स्पष्ट ख्याल आवे तेम ज ते समयनी भाषानुं बंधारण पण समझी शकाय ए हेतुथी ज अहीं त्रीजी कृतिने विशेष स्थान आपेलुं छे. ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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