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________________ उपसंहार ६३५ प्राकृतना स्वरूपने पण अहीं प्रस्तावोचितरीते बतावेलुं छे अने संस्कृतना महाकविओ य तेनी असरथी बची नथी शक्या एम बतावी देश्यभाषाना प्रभुत्वने पण सूचवेलुं छे अने ते पण उक्त कविओना शब्दोमां ज जणावेलुं छे. गुजराती भाषानी उत्क्रांति बताववा माटे ते भाषा साथे संबंध धरावती , आटली नानी मोटी अनेक चर्चाओ कर्या पछी गुजराती भाषानी - ना बारमा सैकानी कविताना नमूनाओमांथी ते सैकानी उत्क्रांति " भाषानो परिचय आपवा प्रयत्न कर्यो छे. ते माटे जोईए ते करतां य वधारे निदर्शनो, वाक्यो वगैरे एटला माटे मूक्यां छे के अहीं बेठां बेठां ज आपणे आजथी आठसो वरस पहेलांनी आपणी गुजराती भाषाना स्वरूपने सरळताथी समझी शकीए. २०२ बारमा सैकानी गुजराती भाषानो शब्ददेह प्राकृतनी जेवो छ एटले के तेमां विजातीय संयुक्त अक्षरो जेवा के 'क', 'क्ल', 'क्त' वगैरे मुद्दल नथी आवता. 'श' के 'ष' नो प्रयोग नथी. ते बन्नेने बदले एकलो 'स' ज देखाय छे. स्वरोमां ऐ, औ, अने, ल पण देखाता नथी. संयुक्त 'र' वाळा एटले 'अंबडी' जेवा प्रयोगो उपलब्ध छे. परंतु 'आचार्य' जेवा तो नहीं ज. क्रियापदोमां अंते अइ, अई, के अउ वगैरे जुदा जुदा स्वरो देखाय छे, तेमनो गुण थतो जणातो नथी अने नामोमां पण एवा स्वरवाळा विभक्तिप्रत्ययो गुणविनाना ज उपलब्ध छे.. __ अभयदेवनी कृति ईश्वरनी स्तुतिरूप छे. वादी देवसूरिनी कृति गुरुनी स्तुतिरूप छे अने हेमचंद्रनी कृति लौकिक बनावोने वर्णवे छे. एथी त्रणेनी भाषा एक ज छतां आगला बेनी भाषा करतां हेमचंद्रनी भाषा थोडी वधारे सुबोध छे अने तळपदी जेवी छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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