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________________ अढारमा सैकानुं पद्य तथा गद्य जांण्या जोसी अनने मागे पण मुरत अन्न जोईई । अन्न वीना शुर सेवा न माने तो मानव्य कम वगोइं ॥ ३४ ॥ अने रथ चंचल चालै अन रतनसी मागें । अन वीना तो वस्त्र न थाई कागल रूडो न लागें ॥ ३५ ॥ अन वीना क्रम एक न चाले सर्व जीवनुं काम । सहु कोमां अन्नदाता मोटो तेनुं सुरनर करे वषांण ॥ ३६॥ अन वीना तेणे अवसरे वस्त्र वीना निसंक । पातसाह तां पडीयां देखें जातां रडतां रंक ॥ ३७॥ राग धन्यासरी धन्य धन्य षेमो देदरांणि जेनी कीरत जगमा जाणि जी। दिधां दांन ते चढतै पाणि जी कविजने वात वषांणि जी ॥ धन्य० ॥१२९॥ पातसाई घणु मांन ज दीइं साह बरद जेणे लीधुं जी। जातां बरद जेणे राण्यां सघलां देइं दांन मन प्रघलां जी ।। धन्य० ॥१३०॥ गरुया साधुतणा गुण गाया अनें वलि रीषि राया जी। कवीजन मत कोई दोषण म देज्यो गुण हुवा ते गाया जी ॥ धन्य० ॥१३२॥ संवत सतर एकतालिसा वरखे रास रच्यो मन हरखे जी । मागसर सुद पुंन्यम गुरूवारे गांम उंनाउं मोझार जी ॥ धन्य०१३३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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