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________________ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति माहारा पीतानि किहि मार्कंडेय सांभलि कौरवराय । को एक कालि देवदानव शुं युद्ध अपमीत थाय ॥ २७ ॥ हाहाकार तव थै रह्यो रे भूवन त्रण्य मोझार्य । प्रथम युद्ध तारकि करूं ते रणमां पाम्यो हार्य ॥ २८॥ ५९४ त्रय पूत्र तेहनि हवा रे एक नांम कमलाक्ष । बीजो पूत्र ते वीद्युमाली त्रीजो ते तारकाक्ष ॥ २९ ॥ त्रोहि मलीने माहातप मांड्यो ब्रह्मा थया तुष्टमांन । कह्यं पूत्र मागो मन्य भावि ते आपू वरदान || ३० ॥ तारकसुत वलता वदि ते ब्रह्मानि शीर नामी । प्राणीमात्रथी अमो न मरीइ ए वर आपो स्वामी ॥ ३१ ॥ पछि ब्रह्मा कहि मृत्युरुपसृष्टीमां अमर नही को प्रांणी । ते माटि बीजो वर मागो ए कारण मन्य जाणी ॥ ३२ ॥ करी वीचार वीरंची प्रति पछि एहवूं बोल्या त्यांहि । त्रण्य भूवनमां रह्या थका अमो वीरू त्रीभोवनमांहि ॥ ३३ ॥ सहस्र वर्षे ते नगर पछि मलि एगठा यारि । एके बांणे वेध करि अहमो मरूं पीतामह त्यारि ॥ ३४ ॥ सत्यवर आपी अनि वीध्याता हौआ अंतरध्यांन । रचवा त्रण्ये नगर वीचारी जोयू आभीतर ज्ञान ॥ ३५ ॥ पछि मयदांनवनि जै कयूं तेणि नगर रच्यां ततकाल । एक कनक एक रुप्यतणूं एक लोहमि अधीक वीशाल ॥ ३६ ॥ स्वर्ग कनक अंत्रीक्षि रूप्यमय कह्यं न जाय वीयांण । लोहमि नगर रहि वसुधातलि शत योजन प्रमांण ॥ ३७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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