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________________ ३८ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति त्यां मात्र साधारण अक्षरसाम्यनो आश्रय लई तेमने म्लेच्छपदो साथे सरखावी अर्थनिश्चय करवामां जोखम छे. प्रस्तुतमां ' पिक ' ' नेम ' वगैरे शब्दो जेवा म्लेच्छभाषामां प्रचलित छे तेवाने तेवा - अविप्लुतअविकृत - आर्यशाखामां पण प्रचलित छे. आर्योए ए पदोने विशेष रीते बदल्यां नथी एटले ए अने एवां बीजां अरूपांतरित अने जेमनो अर्थ आर्यशाखामा उपलब्ध नथी तेवां पदोनो अर्थ समझवा म्लेच्छभाषानी कोई शाखानो आश्रय लेवो पडे तो जरूर लेवो, तेम करतां एटलं जरूर जो जोईए के कोई पण वैदिक विधिने लेश पण बाध न आवतो होय. जे पदो म्लेच्छोए पोतानी परंपराओमां अवधारी राखेला होय अने एवां ज पदो आर्यशाखामा पण उपलब्ध थतां होय, तेमना आर्यशाखानी अर्थनो निर्णय करवा आर्योंनी अने म्लेच्छोनी भाषा अने म्लेच्छजाणारा एवा द्वैभाषिक आर्यो एवां विवादास्पद पदोनी परख करे छे, परख करतां बन्ने पदोनी अविप्लुतता जणाय तो म्लेच्छपरंपरा प्रमाणे तेमनो अर्थ करी शकाय छे. " " वेदोमां पशुना कोई एक अवयव माटे 'क्लोम' वगैरे शब्दो वपरायेला छे. वैदिक अध्वर्युने खबर नथी के 'क्लोम' वगैरे शब्दो पशुना कया अवयवने सूचित करे छे. ' क्लोम ' वगेरेनो खरो अर्थ न जणाय तो वैदिक विधिने दूषण लागे छे. आवे प्रसंगे वैदिक विधिनी शुद्धिने माटे, जे लोको रातदिवस शाखानी भाषा जाणनारा द्वैभा षिक आय यथैव 'क्लोम' आदयः पश्ववयवा वेदे चोदिताः सन्तः अध्वय्र्वादिभिः स्वयम् अज्ञायमानार्थत्वाद् ये नित्यं प्राणिवधाभियुक्तास्तेभ्य एव अवधार्य विनियुज्यन्ते । यथा च निषादेष्ट्यां 'कूटं दक्षिणा' इति विहिते य एव एतेन व्यवहरन्ति तेभ्य एव अर्थतत्त्वं ज्ञात्वा दीयते तथा पिक नेम - तामरस- आदिचोदितं सद् वेदाद् आर्यावर्तनिवासिभ्यश्व अप्रतीयमानं म्लेच्छेभ्योऽपि प्रतीयेत इति "तन्त्रवार्तिक पृ. २२७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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