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________________ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति भक्तनी लाज तूं राक्ष्य लक्ष्मीवरा ! नाम 'दयाल' तूं बरद भारी । तारे कूण छे सेवक सामला ! माहरि किहिवानिं [इ] ठाम ताहरी ॥ २ ॥ मण्डलीक रायनूंं नाम वायूं घणूं तो चीत धरो नाथ माहरा ! | भणि नरसिंओ भूतलिं अवतरी अहर्निश हूं गुण गांउं तोरा ॥ ३ ॥ ५७० ४१ तूं किशा ठाकुर हूं कशा सेवक जो कर्मचा लेख मूंशा न जाय । मण्डलिक हारनिं (काजि ) पिरिंपिरिं प्रभवि छबीला व्यना दूख कहूं न जाय ॥ १ ॥ को कहि लम्पट को कहि लोभिओ को किहि तालकूटिओ रे खोटो । सार करि माहरी दीन जाणी हरि हार आपां तो कहूं नाथ मोटो ॥ २ ॥ बहु पारों सूंदरी कण्ठ बांहो धरी केशवा कीर्तन इम होये । अज्ञान लोक ते अशुभ वाणी वदि पूर्ण भक्त ते प्रेमिं जूइ ॥ ३ ॥ यहिंइ महादेवजीईं पूर्ण क्रीपा करी तहिंनो मिं लक्ष्मीनाथ गायो । माहमिरा–वेला लाज जाती हूती गुरुड मेहलीनि चरणे धायो ॥ ४ ॥ मूहनिं विहिवाइ अतीशि विगोयो उष्ण जल मूकीनिं हास्य कीधूं । द्वादश मेघर्ति मोकल्या श्रीहरि ! आपणा दासनें मान दीधूं ॥ ५ ॥ सोरठमांहिं मुनिं सहूई साचो कह्यो पुत्रीनिं माहमिरूं वारू की नागरी नात्य मांहिं इंडूं चढाविऊं नरसिंआनिं अभिदान दीधूं || ६ || । ४५ देवा ! अमची वार कां बधिर होईला आपूला भक्त कां वीसरी गैला । द्रू प्रह्लाद अमरीष विभीषण नांमिंचे हाथ तिं दूध पीयूला ॥ १ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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