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________________ सोळमा अने सत्तरमा सैकानुं पद्य तथा गद्य रातदिवस मन गरथइ रमइ मुनिवर चारित्र सहीआं गमई। गरथिं वाधइ कलह विवाद गरथई जीव करइ उनमाद ॥९॥ गरथ लगइ अनरथ ऊपजइ गरथिं मन मयला नीपजइ । गुरु गरथिं देहरां ऊधरइ चंदन बाली लीहाला करइ ॥ १०॥ गरथ सहित जे गुरुइ आदर ते निश्चइ सवि कूड़े करइ । मयलू चीवर जे कादवि धूइ तेह वली ऊघडतुं जूइ ॥ ११ ॥ रतन विरांसइ पत्थर लीइ अमृत ठामि विष घोली पीइ । गज मूकी षर ओपरि चढइ सुख कारणि कूयामांहि पडइ ॥ १२॥ वरि सेवु दृष्टिविष साप कुगुरू म सेवऊ अति बहु पाप । साप मरण दीइ एक जि वार कुगुरू मरण दिइ अनंती वार ।।१३।। मालिनी कनक तिलक भाले हार हीइ निहाले । ऋषभपय पषाले पापना पंक टाले । अरजिनवर माले फूटरे फूलमाले । नरभव अजुआले राग निइं रोस टाले ॥१॥ समोसरणि बइट्टा चित्त मोरइ पइटा । असुष अति अरिहा ऊपचिय ते अदीठा । सुपरिकरि गरीठा सौख्य पाम्या अनीठा । भव हुउ मझ मीठा संभव स्वामि दीठा ॥ ३ ॥ मदन मद नमाया क्रोध जोधा नडाया । भव मरण भमाया रागदोसे गमाया । सकलगुण समाया लक्ष्मणा जास माया । प्रणमिसु जिनपाया चंग चंद्रप्रभाया ॥ ८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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