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________________ आमुख संवृत, कल, ध्मात, एणीकृत, अंबूकृत, अर्धक, प्रस्त, निरस्त, प्रगीत, उपगीत, दिवण्ण, रोमश, अविलंबित, निर्हत, संदष्ट महाभाष्यकारे अ दर्शावेलां उच्चार . अने विकीर्ण, वगैरे उच्चारण संबंधी अनेक दोषोनुं MIS महाभाष्यकारे जे विवरण करेलुं छे ते पण तेमनी अगाउ प्रवर्तेली उच्चारणोनी अराजकतानुं समर्थक छे. ३२ जुओ टिप्पण २३ संवृत-उच्चारण करती वखते खरा उच्चारस्थाननी लगोलग जीभ आवी जतां संवृत दोष थाय छे. संवृत = आच्छादित अर्थात् उच्चारणस्थाननी लगोलग जीभ आवी जतां शुद्धउच्चारण ढंकाई जाय छे. ___ कल-उच्चारण करती वखते जीभ खोटा उच्चारणस्थान तरफ वळे त्यारे 'कल' दोष थाय छे. ध्मात-उच्चारण करती वखते जोईए ते करतां प्रमाणमां वधारे श्वासवायुनो संचार थवाथी 'ध्मात' दोष थाय छे: आ ध्मात दोषने लीधे ह्रस्व वर्ण पण दीर्घ जेवो भासे छे. एणीकृत-संशययुक्त उच्चारण. अंबूकृत-उच्चारण करती वखते उच्चार्यमाण शब्द मोढामांने मोढामां ज रहे पण बहार व्यक्त न थाय ते अंबूकृत. __ अर्धक-उच्चारण करती वखते जोईए ते करतां प्रमाणमां न्यूनरीते श्वासवायुनो संचार थवाथी अर्धक दोष थाय छे. अर्धक दोषने लीधे दीर्घ वर्ण पण ह्रस्व जेवो भासे छे. प्रस्त—ज्यारे उच्चारण खवाई गया जेवू थाय त्यारे ग्रस्त दोष थाय. निरस्त-उच्चारणमां ज्यारे निष्ठुरता आवे त्यारे निरस्त दोष थाय. प्रगीत–उच्चारण ज्यारे गीत जेवू थाय त्यारे प्रगीत दोष थाय. उपगीत-ज्यारे उच्चारण प्रगीत जेवू भासे त्यारे उपगीत दोष थाय. क्ष्विण्ण-ज्यारे उच्चारण कंपायमान जणाय त्यारे विण्ण दोष थाय. रोमश-उच्चारण करती वखते ज्यारे जोईए ते करतां प्रमाणमां वधारे घेरापर्यु आवे त्यारे रोमश दोष थाय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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