SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 514
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौदमो अने पन्दरमो सैको छे,' ' नमाय छे,' 'देवाय छे' वगेरे पदोमां उक्त 'आय' नो ज प्रधान उपयोग छे. आगळ जणाज्या प्रमाणे सोळमा शतकना एक औक्तिकमां मंडाइ ( मंडाय छे–शणगाराय छे ) वीकाइ (वीकाय–वेचाय-छे) भणाइ (भणाय छे) वगैरे कर्मकर्तरि प्रयोगोमां (प्रस्तुत निबंध पृ० २१५) पण उक्त 'आय' प्रत्यय वपरायेलो छे, ए ध्यानमा रहे. १८० उक्त तरुणप्रभ, सोमसुंदर, लक्ष्मीधर, हेमहंस, कुलमंडन, गुणरत्न, असाइत अने भीम ए बधा पन्नरमा सैकाना छे. एमांना कोईना समय बाबत लेश पण शंकाने स्थान नथी. तेथी ए कविओ विशे अहीं विशेष लखवु अप्रस्तुत छे. पन्नरमा सैकानी गुजरातीमां केटलांक लक्षणो ते पहेलांनी गुजरातीनां छे एटले ज हुं प्रस्तुत गुजरातीने मध्य गुजराती कहुं छु, पण हवे पछी सोळमा, सत्तरमा अने अढारमा शतकनी गुजरातीमां शरूआतना वे शतकनी गुजराती केटलेक अंशे पन्नरमा शतकनी गुजरातीने अनुसरे छे अने अढारमा शतकनी गुजराती आवी एटले तो जाणे के ते आपणी चालु ज गुजराती छे एम स्पष्टपणे मालूम पडे छे. अढारमा शतकनी गुजरातीमां प्रमाणमां प्राचीनतानां लक्षणो ओछां अने अर्वाचीनतानां क्यारे; त्यारे सोळमा अने सत्तरमा शतकनी गुजरातीमा हजु केटलेक अंशे प्राचीनतानी छाप खसी नथी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy