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________________ आमुख " भाष्यकारनो उक्त उल्लेख एवं ठरावे छे के ' गम्' धातु आर्यशाखानो छे, ' शब्' कंबोज प्रदेशनो छे अने ' हम्म्' धातु सुराष्ट्र तरफनो तथा ' रंहू ' धातु प्राच्यमध्य बाजुनो छे. ( प्राच्यमध्य एटले पूर्वना मध्य देशोआर्यावर्तमां जे देशो पूर्वमां आवेला छे तेओमां जे मध्यवर्ती देशो छे ते मगध' वगैरे देशो.) 6 २७ १६ खुद वेदमां पण ' पिक' वगैरे केटलाक शब्दो एवा मळे छे के जेमनी परंपरा म्लेच्छोमां जळवायेली होय. महर्षि वेदोमां पण अनार्य जैमिनिए रचेला मीमांसादर्शनमां " चोदितं तु प्रतीशब्दोनो प्रवेश येत अविरोधात् प्रमाणेन ” – [ अध्याय १ पाद ३ सू० १० अधिकरण ५ ] एवं एक सूत्र छे. तेना भाष्यमां श्रीशबरमुनि जणावे छे के— " अथ यान् शब्दान् आर्या न कस्मिंश्चिदर्थे आचरन्ति म्लेच्छास्तु कस्मिंश्चित् प्रयुञ्जते यथा पिक नेम-सत - तामरस- आदिशब्दाः तेषु संदेहः । किं निगम-निरुक्त-व्याकरणवशेन धातुतोऽर्थः कल्पयितव्यः उत यत्र म्लेच्छा आचरन्ति स शब्दार्थः ? इति " तात्पर्य ए छे के वेदोमां ' पिक' 'नेम' 'सत' ' तामरस' वगेरे एवा केटलाक शब्दो मळे छे के जेमनो प्रयोग आर्य लोको करता नथी पण म्लेच्छो करे छे तो पछी एवा अनार्य शब्दोनो अर्थ शी रीते समझवो ? शुं निगम निरुक्त के व्याकरण द्वारा एवा शब्दोनो अर्थ मेळववो के म्लेच्छो जे अर्थमां ते शब्दोने वापरे छे ते अर्थ ग्रहण करवो ? आना उत्तरमां भाष्यकार जणावे छे के " ज्यां वैदिक परंपरा साथे कशो विरोध न आवतो होय त्यां म्लेच्छोए मानेलो अर्थ लेवामां य कशो बाघ नथी." उपर्युक्त उल्लेखो द्वारा एवं प्रमाणित थाय छे के आर्यभाषामां अनार्य भाषाना शब्दो पेसी गयेला हता अने ते पण लांबा समयथी. ३१ आनंदाश्रम (पूना) वाळी आवृत्ति. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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