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________________ ३३६ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति प्रयोजनम् , अत्थो धनम्” (८-२-३३-हेमचंद्र ) अहीं 'स्यार्थे' ऊपरथी साघेला ‘स्सहि पद साथे प्रस्तुत कृतिमां वपरायेला ‘साठि'नी तुलना करी शकाय एम छे. अने संभव छे के वखत जतां ते, “वदला'ना अर्थमां रूढ थई गयो होय. केटलांक वाक्योमा जे 'साटे' शब्द चतुर्थीना अर्थने बतावे छे ते 'साटे'नुं मूळ उक्त ‘स्सहि 'मां भासे छे. १३४ : बिहुं विजावडई' एटले 'बे विद्याने बदले-बे विद्याओने लईने--एक थंभणी विद्या आप.' बिहुँ' : विजा' 'वडई' एम त्रण जुदां जुदां पद छे. 'बिहुँ' शब्द पांचमी- बहुवचन छे, 'विज्जा' शब्दने पण पांचमीनुं बहुवचन लागेलं छे; परंतु ते अहीं लुप्त छे. 'बिहुँ' मां जे विभक्तिवचन छे ते ज विभक्तिवचन विशेषणविशेष्य भावने लीधे 'विज्जा'मां पण होय, ए स्वाभाविक छे. “तिलेभ्य : प्रति माषान् अस्मै प्रयच्छति" एटले 'तिलान् गृहीत्वा माषान् ददाति' इत्यर्थ:" अर्थात् 'तलने लईने तेने बदले अडद आपे छे.' जे वस्तु बदलामा लेवानी होय छे ते पांचमी विभक्तिमां आवे छे अने 'बदलो' अर्थ बताववा बदलामां लेवानी वस्तुनी साथे एटले ते वस्तुवाचक पद साथे 'प्रति' अर्थपूरक तरीके लागे छे. “ यतः प्रतिनिधि-प्रतिदाने प्रतिना"-(२-२-७२ हेमचंद्र तथा २-३-११ पाणिनि ). जेम उपर्युक्त वाक्यमां बदलामां लेवाना 'तल' पांचमी विभक्तिमा छे अने तेने 'प्रति' लागेलो छे तेम अहीं बदलामा लेवानी 'बे विद्या' ने पांचमी विभक्ति लागेली छे अने साथे ए ज न्याये 'प्रति' नो उपयोग थयेलो छः प्रति-पडि-वडि-ए रीते अहीं 'विजा' साथे 'प्रति' नुं प्रतिरूप 'वडि' शब्द वपरायो छे. आदिभूत 'प' नुं पण 'व' मां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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