SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारमो अने तेरमो सैको २३५ सुणिवि-सुणि-(सांभळी) कंठिआ-कंठी (गळे पहेरवानी कंठी) वसंति-वसंते-वसंतऋतुमां वट्ठलओ-वाटलो सुमरि-सुमरी (याद करी) चंदुल्लओ-चंदलो-चांदलो-चांदलियो तक्खणि-टांकणे (ते वखते) गंडुअ-गेंद-कंदुक (दडो) पहिउ-ई-(पथिक-प्रवासी) मन्नावि-मनावी गाम्वि-गांव-गामे देक्खिवि-देखी पट्टणि-पाटणे वेल्लडी-वेलडी हट्टि-हाटे सत्थ-साथ-(समूह) चउहट्टि-चौटे मुआ-मुआ राउलि रावळे-रावणे घट्टई-घाट-घाटडी (ओढवानुं | देउलि देवळे स्त्री- वस्त्र) दीसइ-दीसे छे त्रुट्टी-त्रुटी-तुटी पत्तिजइ-पतीजे ( विश्वास कीजे ) छड्डेविणु-छंडीने मेलइ-मेले (छोडे) गोवालीअण-गोवालण भोलिम-भोळप लग्गी-लागी जगु-जग पाइ-पाय मुज्झइ-मुंझे छे-मुंझाय छे ज लइ-जळे छे झलकंति-झलकती-चळकती तवइ-तवे छे-तपे छे २७० भाषामा 'पथिक-प्रवासी' ना अर्थमां प्रस्तुत 'पइ' शब्दनो व्यवहार चालु छे. ज्यारे आपणे त्यां कोई नोतरियो नोतरं देवा आवे छे त्यारे बोले छे के "सगटंम सइ परोणो पइ” सगटंम एटले सहकुटुंब, सह-सहित, परोणो एटले अतिथि अने पइ एटले पथिक-प्रवासी-मुसाफर. अर्थात् कुटुंब साथे अने मेमान तथा पथिक साथे-ए बधांने लईने जमवा आववानुं नोतरुं छे. “सगटंम सइ परोणो पइ" ए वाक्य काठियावाडमां प्रचलित छे अने अमरेलीमां तो में अनेकवार सांभळ्युं पण छे. पथिक-पहिअ-पइ-ए त्रणे समान शब्दो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy