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________________ ८-४-४३७ वड्डप्पणु वडपण. ऊपर जणावेला नियमोमां आ० हेमचंद्रे पोताना समयनी व्यापक भाषानुं व्याकरण समावेलं छे. आपेला ए नियमो मोटा मोटा छे अने व्यापक जेवा छे. वैदिक भाषा अने व्यापक प्राकृतभाषा वच्चे जे समानता बतावी गयो धुं ( पृ० ५१-७४ ) ते जोतां स्पष्ट जणाई आवे एम छे के प्रस्तुत ऊगती गुजरातीमां पण ते समानता केटला बधा अंशमां ऊतरी आवी छे. हेमचंद्रे दर्शावेळी ऊगती गुजराती अने वैदिक भाषा वच्चेनी समानता ७७ आगळ कर्तुं छे तेम वैदिक काळना व्यापक अर्थवाळा आदिम अपभ्रंश द्वारा हेमचंद्रे बतावेला अंतिम अपभ्रंशनी के उगती गुजरातीनी उत्पत्ति थई अने ते द्वारा आ आपणी वर्तमान गुजराती आवी एटले वैदिक काळनुं उक्त अपभ्रंश, ऊगती गुजरातीनी जननी थाय अने वर्तमान गुजरातीनी मातामही थाय पुत्रीमां मातानां खास खास लक्षणो ऊतर्या विना रहे नहीं एटलुं ज नहीं, मातामहीनो स्वभाव तो ऊतरे ज. पौत्रीमां पण हेमचंद्रे बतावेली भाषा करि देवाहो करि आमुख वास गय नं ( आज्ञार्थ बीजो पुरुष एकवचन ) ....... कर + इ–करि-' इ' प्रत्यय.... बोध + इ ( संबोधन बहुवचन ) ........ ( संबंधक भूतकृदन्त ) ........ ( क्यां )........ कुह दिविदिवि ( रोज रोज ) ........ Jain Education International ( व्यास 'र' वधारे )....' अधिगु' नुं ( षष्ठी विभक्ति )... ( उपमासूचक ) ........ २१७ For Private & Personal Use Only वैदिक भाषा बोधि बोधि ― देवासः पीत्वी ' अध्रिगु' चर्मन् ( सप्तमी विभक्ति ) न कुह दिवे दि www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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