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________________ आमुख २०३ विकल्पे 'ध' अने बीजा पुरुषना बहुवचनने सूचवता 'ह' प्रत्ययने बदले विकल्पे 'ध'. उक्त पांच विधानोमां- पहेलुं अने चोएं विधान तो हेमचंद्रे पोते . अहीं स्वीकारेलुं ज छे.—(जुओ व्यंजनपरिवर्तन तु नियम ३ पृ० १८९ कधिद, सवध ) शौरसेनीनां सूत्रनो आशय विधानो उपरांत साधारण प्राकृतमा जे जे विधानो तेमणे बताव्यां छे ते पण प्रस्तुत भाषामां इष्ट छे. ए हकीकत आ “शौरसेनीवत्" (८-४-४४६) सूत्र सूचवे छे. कारण के शौरसेनीना प्रकरणमा " शेषं प्राकृतवत्" (८-४-२८६ ) एवं कही आव्या छे. अहीं ए ध्यानमा राखवानुं छे के शब्दविज्ञाननी दृष्टिए मागधी, पैशाची के चूलिकापैशाची साथे हेमचंद्रे बतावेली प्रस्तुत अपभ्रंशनुं साम्य नथी परंतु प्राकृत अने शौरसेनी साथे छे, एवो आशय आ “शौरसेनीवत्" सूत्रनो छे. वळी, आ सूत्रद्वारा कोई एवं विधान करे के हेमचंद्रे बतावेलुं अपभ्रंश, शौरसेनी-अपभ्रंश छे तो ते बराबर नथी. हेमचंद्र, पोताना समयनी लोकव्यापक भाषानुं व्यापक व्याकरण बनावे छे. एटले तेमना समयमा प्रवर्तती व्यापक भाषानां जे जे व्यापक लक्षणो छे ते, तेमणे सूचव्यां छे. परंतु तेमणे शौरसेन अपभ्रंश, पैशाच अपभ्रंश वगैरे कोई एकदेशीय भाषानां लक्षणो सूचववा प्रयास कर्यो होय एवं सूचन तेमना व्याकरणमांथी मळतुं नथी. तेमने कोई एकदेशीय भाषा ज इष्ट होत तो “ स्वराणां स्वराः प्रायोऽपभ्रंशे" (८-४-३२९) सूत्रमा तेओ 'अपभ्रंश' एवो सामान्य शब्द ज न मूकत; किन्तु कोई विशेष शब्दनुं सूचन करत. वळी, ए सूत्रनी वृत्तिमां " "प्राय'-ग्रहणात् यस्य अपभ्रंशे विशेषो वक्ष्यते तस्यापि कचित् प्राकृतवत् शौरसेनीवच्च कार्य भवति" एवी भलामण पण न करत. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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