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________________ १६४ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति चाम्मैट वगैरे विद्वानोए पोताना काव्यशास्त्रने लगता ते ते प्रसिद्ध ग्रंथोमां पण 'अपभ्रंश' पदनो रूढार्थवाचकरूपे उपयोग करेलो छे. ___उक्त बधा उल्लेखो द्वारा साहित्यिक अपभ्रंशनुं अस्तित्व विक्रमना छठा सैकाथी आगळ जतुं नथी. किन्तु भरते करेलो 'आभीरोक्तिः' शब्दनो प्रयोग अने तेमणे उदाहरणरूपे आपेलां उक्त अपभ्रंश पद्यो साहित्यिक अपभ्रंशने विक्रमना छट्ठा सैकाथी पूर्वे लई जाय एम छे. तेम छतांय विद्वानो साहित्यिक अपभ्रंशने वि० छठा सैकाथी पूर्वनुं न स्वीकारता होय तो तेमनो ते मत मारी नम्र कल्पनाथी जोतां संगत भासतो नथी. ___ वात एम छे के कोई पण साहित्यिक भाषानी कविता वा गद्य कांई एकाएक फूटी नीकळतुं नथी. जे भाषा लोकभाषा तरीके जामेली होय, जेना प्रयोगो स्थिरपणाने पाम्या होय अने कवि पोताना सर्वभावोने व्यक्त करी शके एवी जे भाषा समर्थ होय ते भाषा साहित्यमां वापरी शकाय छे. कोई पण लोकभाषाने साहित्यिक भाषारूपे पक्क थतां वखत लागवानो ज. एटले ए अपेक्षाए जोतां भरते उदाहरणरूपे आपेलां पद्यो ज विशिष्ट अपभ्रंश पद्यनु भोजे आपलं उदाहरण आ प्रमाणे छे: "लइ, वप्पुल ! पिअ दुद्धं कत्तो अम्हाणहुँ छासि। पुत्तहु मत्थे हत्थो जइ दहि जम्मे वि जअ ? आसि"॥-सरस्वतीकंठा० पृ० १४५ आ नीचे उक्त अपभ्रंश पद्यनी चालु गुजरातीमां बरोबर छाया बतावी छ : "ले, बापला ! पी दूध क्यांथी अम्होने छाश । पुत्रने माथे हाथ जो दही जन्मे बी जोयुं (?) होय" ॥ आ छाया जोतां एम स्पष्ट जणाय छे के आजनी गुजराती अने ते समयनी प्रचलित भाषा ए बे वच्चे घणुं ज थोडं अंतर छे अने एम छे माटे ज भोजना समयनी गुर्जरलोकप्रचलित भाषाने हुं ऊगती गुजराती कहुं छु. १६३ “ संस्कृतं प्राकृतं तस्य अपभ्रंशो भूतभाषितम् ।। इति भाषाश्चतस्रोऽपि यान्ति काव्यस्य कायताम् ॥" -वाग्भटालंकार द्वितीय परिच्छेद श्लो० १. " अपभ्रंशस्तु यच्छुद्धं तत् तद् देशेषु भाषितम्”-वाग्भटा० श्लो० ३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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