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________________ १४४ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति कही शकाय एवं छे के, उभय प्रकारना संस्कृत ऊपर देश्य प्राकृतनी कांई ओछी असर नथी. ६६ शौरसेनी---शूरसेन देश अने तेनुं मुख्य नगर मथुरा. जे भाषा मुख्यपणे मथुरा अने तेनी आसपासना प्रदेशोमां शौरसेनी भाषानो प्रवर्तती हती तेनुं नाम शौरसेनी. शूरसेन देशमां कोई परिचय एक काळे प्रवर्ततुं आदिम प्राकृत आ भाषानुं प्रभव स्थान छे. साधारण प्राकृत अने शौरसेनी प्राकृतना शब्ददेहनुं स्वरूप लगभग सरखं छे. विशेषता 'द' श्रुतिनी छे. शब्दमा रहेलो असंयुक्त अने अपदादिभूत 'त', 'द' रूपे परिणमे छे. पूरित-पूरिद, मारुति-मारुदि, मन्त्रित–मंतिद. शूरसेन प्रजा अघोष 'त' ने बदले घोष 'द' नो ध्वनि करनारी हशे. ' शौरसेनी' भाषा एक खास पृथक् भाषा तरीके क्यारथी शरू थई ए बाबत शं कही शकाय ? मथुरा नगरी श्रीकृष्णना वखतथी विख्यात छे. संभव छे के ते पहेलां पण ते विख्यात होय. शूरसेन प्रजाना अतिशय तेजने लीधे वा तेना उच्च साहित्यने लीधे शौरसेनी भाषा विश्रुत थई हशे. वर्तमानमां तो ते भाषाना विशिष्ट साहित्यनी उपलब्धि नथी. भास वगेरे महाकविओए निर्मला नाटकोमा केटलांक पात्रोए शौरसेनीने साचवी राखी छे. जैन परंपरानी दिगम्बर शाखाना . मध्ययुगे निर्मायेला साहित्यमां पण शौरसेनी दिगंबर जैन सचवायेली छे. पालि भाषा अने आर्ष प्राकृतनी साहित्य अने शौरसेनी भाषा प० मूळ शारसनामा असयुक्त व्यज - पेठे मूळ शौरसेनीमां असंयुक्त व्यंजनोनो घसारो ओछो जणाय छे. अने पछीथी ते, साधारण प्राकृतनी पेठे वधतो भासे छे. पालि भाषामां बे शब्दो बच्चे केटलेक आया। __ १२५ “महुरा य सूरसेणा"-(पन्नवणासूत्र-आर्य-अनार्य विचार) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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