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________________ ९३२ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति काभिः, यौनकाभिः, पल्हविकामिः, ईसिनिकाभिः, वारुणिकाभिः, लासिकामिः, लकुसिकाभिः, द्रमिलामिः, सिंहलीभिः, पुलिन्द्रीभिः, आरबीभिः, पक्वणीभिः, बहलीभिः, मुरण्डीभिः, शबरीभिः, पारसीभिः-एवंभूताभिः नानादेशीभिः नानाविधाऽनार्यप्रदेशोत्पन्नाभिः विदेश....परिमण्डिकाभिः...स्वदेशे यद् नेपथ्यम् परिधानादिरचना तद् गृहीतो वेषो यकाभिस्ताः तथा....निपुणकुशलाभिः विनीताभिः चेटिकाचक्रवालेन अनार्यदेशसंभवेन-" (रायपसेणइय पृ० ३३८, कंडिका २१० गूर्जरग्रंथ० )-अर्थात् दृढप्रतिज्ञ राजकुमारना लालन-पालन अने संवर्धन माटे अनार्यदेशनी अनेक दासीओ राखवामां आवेली : किरात, बर्बर, बकुश, यौनिक यवनिक (?), पल्हविक, ईसिनिक, वारुणिक, लासिक, लकुसिक, द्रमिल, सिंहल, पुलिंद, आरब, पक्कण, बहल, मुरण्ड, शबर अने पारसीक एम ए दासीओ अनेक अनार्य देशोनी जन्मेली हती, विदेशमां आवीने मंडायेली हती, अने पोताना पहेरवेशमा रहेनारी ते दासीओ निपुण, कुशल तथा विनीत हती." ___ आ रीते ठेठ अन्तःपुर सुधी अने वळी राजबीजना उछेर माटे बीजी बीजी प्रजाओनां बाईओने वा भाईओने जे देशमां विशिष्ट स्थान होय ते देशनी भाषामां ते ते अनार्य जातिओना शब्दो भळे ज अने ते भळेला शब्दो आर्य-उच्चारणनो ओप पामी सचवाई वारसा उतार चाल्या ज आवे ए हकीकत निर्विवाद छे. आदिम प्राकृतना काळथी के त्यार पछीना समयथी जे एवा उक्त बन्ने संतानवाळा शब्दो चाल्या आव्या छे अने एमांना जे केटलाक देशीर्शब्दसंग्रह वगैरे देश्यकोशादि ग्रंथोमां सचवाया छे ते 'देश्य ' वा ' देशी' प्राकृतना समझवाना छे. ११८ वर्तमानमा जे ग्रंथ 'देशीनाममाला' शब्दथी जाणीतो छे तेनुं खरं नाम 'देशीशब्दसंग्रह' छे. आचार्य हेमचंद्र पोते ज लखे छे के “विरइज्जइ देसीसह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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