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________________ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति णवं अत्थदंसणं संनिवेससिसिराओ बंधरिद्धीओ अविरलं इणमो आभुवणबन्धं इह णवर पययम्मि ॥ -(गउडवहो पृ० २८-२९ गा० ९२-९३) "जेम मेघनां पाणी समुद्रमां पडे छे अने फरी पाछां समुद्रमाथी बहार नीकळे छे तेम बधी भाषाओ प्राकृतमा समावेश पामे छे अने प्राकृतमांथी बहार नीकळे छे. ९२. नवा नवा अर्थोनी घटना, नवा नवा बंधोनी रचना वगैरे ए बधं ज्यारथी सृष्टि सर्जाई त्यारथी एक मात्र प्राकृत भाषामां सुलभ छे. ९३. 'पायय' अने ‘पयय' ए बन्ने शब्दो 'प्राकृतभाषा'ना सूचक छे. उक्त गाथामां कविए ‘पयय' शब्द प्रयोजेलो छे. गाथानो अर्थ जोतां कवि, प्राकृतभाषा तरफ पोतानी प्रबल भक्तिने सूचवतो होय एवं भासे छे. परंतु कविना ए कथनमां शब्दविज्ञाननी दृष्टि होय एम जणातुं नथी. अथवा विवरणकारना कथन प्रमाणे कविए अहीं 'प्राकृत' शब्दनो उपयोग 'शब्दब्रह्म' माटे को छे अने ते द्वारा एम सूचव्युं छे के सर्व भाषाओ ए 'शब्दब्रह्मनी विकृतिरूप छे. कविना ए सूचनमां पण भाषाने लगती वैज्ञानिक दृष्टि करतां ‘शब्दब्रह्म'नी विशेष भक्ति ज तरी आवे छे. ५३ निष्कर्ष ए आव्यो के वेदोनी ऋचाओमां सचवायेली जे भाषानो नमूनो आपणी सामे छे ते भाषा ज्यारे लोकोनी आदिम प्राकृत अने बोलचालनी हती अने बोलचालनी होवाने लीधे जे लौकिक संस्कृत - वञ्चेनो भेद - आपोआप परिवर्तनो पाम्ये जती हती, जेने संस्कारवा खास कोइ प्रयत्न नथी थयो एवी आबालगोपाल सुधी प्रसरेली भाषा ते आदिम प्राकृत वा व्यापक प्राकृत. अने ए ऋचाओनी भाषाना अने उक्त आदिम प्राकृतभाषाना प्रयोगोने ध्यानमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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