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________________ ३८ • वीर तैयार करने वारणामां बेसी कोई अतिथिनी वाट जोई रही छे. त्यां एवखते फरतो फरतो वचमां आवतां अनेक घरोने वटावतो वटावतो श्रीभद्राना घर पासे गोशालक आवी पहोंच्यो श्रीभद्राए तेने जोई तेने आदरपूर्वक पोताने त्यां आवीने भिक्षा माटे निमंत्रण आप्युं. ते घरमा पेठो, श्रीभद्राए आसन आप्युं, तेना उपर ते बेठो, तेनी सामे भोजन मूक्युं अने तेमां घी अने मध साथे सारी रीते पकावेल खीर पीरसी. आमां मांसनो संभव केम होई शके ? एम पोतानी बुद्धिश्री निश्चय करीने गोशालाए ए खीरने संतोषपूर्वक खाधी. खाई कराने ए तो भगवाननी पासे गयो. पछी थोडं हसीने भगवानने कहेवा लाग्यो के, हे भगवान् ! तमे अव्यार लगी जे भविष्य कहेल अर्थात् तमे अत्यार लगी जे जोश जोया ते खरा पड्या पण आजे तो तमारा जोश खोटा पड्या छे. सिद्धार्थे कीं के, हे भलामाणस तुं आम उतावळो था मा. अमे तने जे कहेल छे ते तद्दन खरुं छे. जो तने विश्वास न आवतो होय तो तुं वमन कर एटले तने अमारी वात नजरोनजर देखाशे पछी गोशाळके गळामां आंगली नाखीने उलटी करी. वमेली खीरमां मांस जोवामां आव्युं तथा वाळ वगेरेना सूक्ष्मभागो जोवामां आया. आ जोईने गोशाळाने भारे रीस चडी अने पाछो ते शहेरमां जइने ते घरने शोधवा लाग्यो. पेली श्रीभद्राए तो गोशाळाना भयथी घरनुं बारणं ज फेरवी नाखेल तेथी ए महोल्लामां आववा छतां अने फरी फरीने शोधवा छतां गोशाळा पोताने मांसनी खीर आपनारनुं घर शोधी ज न शक्यो त्यारे ए बोल्यो के [०२४] जो मारा धर्म गुरुना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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