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________________ २७ संग आवे छे एटले वखत थई गयो छे. माटे आपणे भिक्षा निमित्ते गाममां प्रवेश करीए. सिद्धार्थे कां- भिक्षा माटे अमारे फरवानी जरूर नथी. पछी गोशाळो एकलो ज भोजन माटे गाममां पेठो अने एवी भिक्षा माटे आमतेम फरतां फरतां पेला पार्श्वनाथना शिष्योने जोया. पार्श्वनाथना ए साधुओ पासे कपडां वगेरे विचित्र प्रावरणो हतां अने पात्र वगेरे बीजां उपकरणो हतां. तेमने जोईने गोशाले पूछयुं - तमे कोण छो ? तेओए जवाब आयो - अमे निग्रंथ श्रमणो छीए अने शठ एवा कमठे महामेघ वरसावीने मेघनी तीक्ष्ण धाराओ वडे जेमने त्रास आपेलो अने ए जोई व्याकुल थयेला नागराजे पोतानी फणाना फलक विस्तारी जेमने मोटुं छत्र धरेल हतुं अर्थात् कमठना त्रासमांथी जेमनी रक्षा करी हती एवा पार्श्वनाथ भगवंतना अमे शिष्यो हीए. आ वात सांभळी माथाने धुणावीने गोशाळो तेमनो परिहास करतो बोल्यो -अहो ! अहो ! तमे भारे मोटा निर्ग्रन्थो जोया, तमे बहु आकरुं तप करो हो ए जोयुं, तमे आटलो बधो ग्रंथ एटले परिग्रह धारण करो छो छतां य पोतानी जातने निर्बंथ कहो छो ए भारे आश्चर्य कहवाय, आ तो तमे प्रत्यक्ष जूटुं ज बोलो छो. तमारुं आ कारण विनानुं अभिमान छे, खरी रीते तो तमाम रीते जेओ निर्ग्रन्थ होय छे तेमां तमारो समावेश न थइ शके. मारा धर्माचार्ये ज नहीं त्याग करी शकाय एवां वस्त्र वगेरे परिग्रहनो त्याग करेल छे तथा कठोर तपना आचरणमां ते तल्लीन छे माटे एज महात्मा यथार्थ रीते निर्ग्रन्थ कही शकाय. आ वात सांभळी भगवानने नहीं जाणता एवा पार्श्वनाथना शिष्योए गोशालकने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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