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________________ १३६ अचरज छे के आ तियंच-पशु छतां मनुष्यनी भाषामां वात करे छे. तेमां पण हुं मारी मातानी साथ सहवास माटे जाउं छं एवं मने दूषण बतावे छे. आ वात केम बनी शके ? कयां मारी माता ! कयां हुं ? आ स्थितिमां सहवास पण केवो ? आ बधी वात तद्दन कोई रीते घटती आवती नथी-बंधबेसती लागती नथी अथवा आ अंगे कोई कारण जरूर होवू जोईए.विधातानी चेष्टाओ विलक्षण देखाय छे अने आ बधुं संभवे पण खरं. माटे हवे ते वेश्या स्त्रीने ज जईने पूछीश. 'उत्थान जाणवू छे'-बनेली वातनो आगळ पाछळनो वृत्तांत जाणवो छे एम विचारीने ते तेणीने घरे गयो. एणीए उभी थइने एनो आदर कर्यो, बेसवाने आसन अपाव्युं अथवा बेसवाने आसन बताव्यु, तेना पग पखाळ्या. थोड़ीबार परस्पर आड़ीअकळी वातो थइ. हवे प्रसंग जोईने वेसियायणे तेणीने पूछ्यु हे भद्र ! तुं कयां जन्मेल छ ? तारी उत्पत्तिनो वृत्तांत तो कहे. तेणी हसती हसती बोली-ज्यां आटला बधा जन्मे छे त्यां हुँ पण जन्मी छं. वेसियायण बोल्यो-मश्करीनुं काम नथी. हुं खास कारण छे माटे पूर्छ छं. तेणी बोली-तुं मुग्ध-अणसमजु छे केमके पुरुषनी, राजानी, ऋषिना कुलनी, उत्तम स्त्रीनी तथा लक्ष्मीनी जातनी उत्पत्ति पूछाय नहीं. जो पूछवामां आवे तो पूछनारनी कुशलता केम रहे अर्थात् पूछनारो दुःखी थाय. १ कादवमांथी कमळ थाय छे, समुद्रमांथी चन्द्र थाय छे, छाणमांथी इंदीवर-विशेष प्रकार- कमळ थाय छ, अरणीना लाकडामाथी अग्नि थाय छे, सनी फण उपर मणि थाय छे, गायना पित्तथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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