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________________ १२९ [पृ० ७९] जेणे पोतानी बाल्यावस्थामां अडधा अंगूठानां स्पर्शमात्रथी ऊंचा एवा मेरु पर्वतने कंपावेलो अने तेने लीधे आखी धरणी कंपी गई तथा ते उपरना मोटा मोटा कुलाचलो, तेमांनां तमाम प्राणीओ अने समुद्रो पण हली गया-खळभळी गया-३ एवी शक्तिवाळा अने अतुल बल-पराक्रमवाळा भगवान होवा छतांय ते जिनेन्द्रने निर्दय कर्म एक कीडानी पेठे आपदा आप्या करे छे. अहह ! ए केवं छे ? ४ वळी, भगवाननी आपदा निवारवा माटे इन्द्रे तेमनी सेवामां सिद्धार्थने मेल्यो हतो ते पण गोशालकने जवाब आपती वखते ज चमके छे. ५ वळी बीजं- आ त्रण भवनना रंगमंच उपर असाधारण मल्ल जेवा वीर भगवान पण जो सारी रीते प्रशांत चित्त राखीने आ प्रकारनी आपदाओ सहन करे छे, ६ तो मात्र थोडो ज अपकार कर्या छतांय एवा अपकारी लोको उपर यथार्थ भावोने जाणनारा महामुनिओ शा माटे रोष करता होय छे ? ७ ___अथवा थोडो पण घा पडतां ज माटीनू के कांकरानुं ढे' चूरेचूरा थई जाय छे अने निष्ठुर एवा लोढाना बनेला घणना घा पडवा छतांय वज्रने ते घा लागता नथी अर्थात् वज्रना चूरा थता नथी. ८ . हवे त्रिलोकना नाथ ते अनार्यभूमिओमां हेंडता-फरता-उत्तम आशयना विधानवाळु एबुं नवमुं चोमासुं आवतां-९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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