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________________ १२६ पछी जगगुरुए पण त्यांथी नीकळीने तुन्नाग नामना गाम तरफ प्रस्थान कर्यु. त्यां जतां मार्गमां वच्चे ताजा परणेला एक बीजाना हाथमा हाथ नाखीने बहूवर आवता हता. [पृ०७७] ते बन्नेनां कान टापरा - बूचाहता, आँखों बिलाडानी जेवी मांजरी हती, लटकतुं मोटुं पेट हतुं, डोक घणी लांबी हती, रूपे बन्ने काळां हतां अने शरीरनो तेमनो घाट सारो न हतो, दांत होउनी सीमाने वटावाने बेहार नीकळी गयेला लांबा हता. आ जातना जोडाने आवतुं जोईने गोशाळो खुशखुशाल थतो हसतो हसतो कहेवा लाग्यो- अहो ! मारा धर्मगुरुनी कृपाथी हुं घणाय देशोमां फर्यो कुं. आटलो व फरतां फरतां पण में आवो संजोग एटले आवुं जोडुं क्यांय पण जोयुं नथी. तो खरेखर -- विधाता भारे चीवटवाळो छे, भलेने माणसो एक बीजाथी दूर रहेतां होय छतांय जेने जे योग्य होय तेने बीजा एवा ज योग्य माणसनो मेळाप करावी दे छे. पछी ए बन्ने भले गमे त्यां रहेतां होय पण जुगतुं जोडुं विधाता जोडी ज आपे छे. १ सामे आवतां ए वरवहूने जोईने बराबर तेमनी सामे ऊभो रहीने गोशाळो आ बात वारंवार कहेवा लाग्यो अने ज्यारे ते ओम बोलतो न अटक्यो त्यारे ते बन्नेए गोशाळाने खूब पीटयो अने बांधीने वांसनी झाडीमां फेंकी दीघो. त्यां ते चत्तोपाट पड्यो अने मोटो अवाज करीने कहेवा लाग्यो के - हे स्वामी ! मारी उपेक्षा केम करो छो ? आ हुं अहीं वांसनी झाडीमां पड्यो छु, आ कष्टमांथी तमे मने सर्वप्रकारे मुकावो. ज्यारे गोशाळो वारंवार एम बोलतो हतो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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