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________________ १२० पूर्वक उद्धार करवाथी तो वळी जे पुण्यराशिनो लाभ थाय छे तेनी तो शी वात ? ४ तो हे महायशस्वी ! तें तारा पोताना बाहुद्वारा उपार्जेल धन वडे आ जे जीर्णोद्धार करावेल छे ते खरेखर चोक्कस सारं करेल छे. ५ आ रोते जीर्णोद्धार करवा-करावामां न आवे तो वखत जतां तीर्थनो उच्छेद-नाश ज थई जाय अने जिन भगवान तरफ भक्ति न रहे, एम थतां एवे स्थाने साधुओ पण न आवे एथी सरवाळे नुकशान थाय ने भव्य लोकोने बोधिनो लाभ न थाय. ६ संसाररूप समुद्रने तरी जवा माटे वहाण जेवा एवा जिनभवनने कराव्या पछी एनी अंदर अत्यन्त शांति अने सुन्दर जिन प्रतिमा कराववी जोईए-स्थापवी जोइए. ७ ए जिनप्रतिमानी त्रणे काल अप्रमत्त मन राखीने उत्तम प्रयत्न पूर्वक पूजा करवी जोईए. ते पूजाना वळी आठ प्रकार आ प्रमाणे छे: ८ वासक्षेप पूजा, कुसुम पूजा, अक्षत पूजा, धूप पूजा, दीप पूजा, जलकलश पूजा, फूल पूजा, अने भोजन पूजा एटले खाद्य पदार्थोने धरवारूप पूजा. आ आठे प्रकारो मनुष्योना नेत्रोने आनन्द पमाडे एवा छे. ९ जिनेन्द्रोनी आ प्रकारे आठ प्रकारनी पूजा करवामां आवे तो ते पूजा खरेखर एवी कोई कल्याणरूप वस्तु नथी जेने ' आपणी पासे पूजा करनारनी सामे-न लावी आपे. १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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