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________________ २९० श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक २६.-उद्देशक २. २४. प्र० नेरइए णं भंते ! आउयं कम्मं किं बंधी-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! अत्थेगतिए चत्तारि भंगा, एवं सम्वत्थ वि नेरायाणं चत्तारि भंगा, नवरं कण्हलेस्से कण्हपक्खिए य पढम-ततिया भंगा, सम्मामिच्छत्ते ततिय-चउत्था । असुरकु. मारे एवं चेव, नवरं कण्हलेस्से वि चत्तारिभंगा भाणियचा, सेसं जहा नेरइयाणं, एवं जाव-थणियकुमाराणं पुढविकाइयाणं सवत्थ वि चत्तारि भंगा, नवरं कण्हपक्खिए पढम-ततिया भंगा। २५. [प्र०] तेउलेस्से-पुच्छा। [उ०] गोयमा बंधी न बंधइ बंधिस्सइ सेसेसु सम्वत्थ चत्तारि भंगा। एवं आउक्काइयवणस्सइकाइयाण वि निरवसेसं । तेउकाइय-वाउकाइयाणं सवत्थ वि पढम-ततिया भंगा । बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदियाणं पि सम्वत्थ वि पढम-ततिया भंगा। नवरं सम्मत्ते, नाणे, आभिणिबोहियनाणे, सुयनाणे ततिओ भंगो। पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं कण्हपक्खिए पढम-ततिया भंगा, सम्मामिच्छत्ते ततिय-चउत्थो भंगो, सम्मत्ते, नाणे, आभिणिबोहियनाणे, सुयनाणे, ओहिनाणे एएसु पंचसु वि पदेसु बितियविहूणा भंगा, सेसेसु चत्तारि भंगा। मणुस्साणं जहा जीवाणं । नवरं सम्मते, मोहिए नाणे, आभिणिबोहियनाणे, सुयनाणे, ओहिनाणे एएसु बितियविहूणा भंगा, सेसं तं चेव । वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारा । नाम गोयं अंतरायं च एयाणि जहा नाणावरणिजं । 'सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव-विहरति । छवीसतिमे बंधिसए पढमो उद्देसओ समत्तो । नैरयिकने मामयी मायुषवन्द २४. प्रि०] हे भगवन् ! शुं नैरयिक जीवे आयुष कर्म बांध्यु हतु-इत्यादि पृच्छा. [उ०] हे गौतम! कोइक नैरयिक जीवे बांध्यु हतु-इत्यादि चार भांगा कहेवा. ए प्रमाणे बधे ठेकाणे पण नैरयिको संबंधे चार भांगा जाणवा. परन्तु विशेष ए के, कृष्णले. श्यावाळा अने कृष्णपाक्षिकने पहेलो अने त्रीजो भांगो जाणवो, सम्यग्मिथ्यादृष्टिमां त्रीजो अने चोथो भांगो कहेवो. असुरकुमारोमा एज रीते जाणवं, पण विशेष ए के कृष्णलेश्यावाळा जीवोने चार भांगा कहेवा. बाकी बधुं नैरयिकोनी पेठे समजबु. ए रीते यावत्-स्तनितकुमारो सुधी जाणवं. पृथिवीकायिकोने बधे ठेकाणे चारे भांगा कहेवा. पण विशेष ए के कृष्णपाक्षिकमां पहेलो अने त्रीजो भांगो कहेवो. २५. [प्र०] तेजोलेश्यावाळा संबंधे प्रश्न. [उ०] हे गौतम! तेणे बांध्यु हतुं, बांधतो नथी अने बांधशे. बाकी बधे स्थले चार भांगा कहेवा. ए प्रमाणे अप्कायिक अने वनस्पतिकायिकने पण बधुं जाणवू. तेजस्कायिक अने वायुकायिकने विषे बधे पहेलो अने त्रीजो भांगो कहेवो. बेइंद्रिय, तेइंद्रिय अने चरिंद्रियने बधे पहेलो भने त्रीजो भांगो जाणवो. पण विशेष ए के, सम्यक्त्व, ज्ञान, आभिनिबोधिकज्ञान अने श्रुतज्ञान संबंधे त्रीजो भांगो कहेवो. पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकोने कृष्णपाक्षिक संबंधे पहेलो अने त्रीजो भांगो कहेवो. सम्यग्मिध्यात्वमां त्रीजो अने चोथो भांगो कहेवो. सम्यक्त्व, ज्ञान, आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान-ए पांचे पदोमां बीजा भांगा सिवाय बाकीना त्रणे भांगा कहेवा, अने बाकीनां पदोमां चारे भांगा कहेवा. जेम जीवो संबन्धे कयुं छे तेम मनुष्योने पण कहे. पण विशेष ए के, सम्यक्त्व, औधिक-सामान्य ज्ञान, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अने अवधिज्ञान-ए बधा पदोमां बीजा भांगा सिवाय बाकीना त्रणे भांगा कहेवा; अने बाकी बधुं पूर्वोक्त जाणवु. जेम असुरकुमारो संबंधे कयुं छे तेम वानव्यंतर, ज्योतिषिक अने वैमानिक संबंधे पण कहेवू. जेम ज्ञानावरणीय कर्म संबंधे कह्यु छे तेम नाम, गोत्र अने अंतराय संबंधे पण कहे. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन्! ते एमज छे'-एम कही यावत्-विहरे छे. छवीशमा बंधिशतकमा प्रथम उद्देशक समाप्त । बीओ उद्देसो। १. [प्र०] अणंतरोववन्नए णं भंते ! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी-पुच्छा तहेव । [उ०] गोयमा ! अत्थेगतिए बंधीपढम-बितिया भंगा। २. [प्र०] सलेस्से णं भंते ! अणंतरोववन्नए नेरइए पावं कम्मं किं बंधी-पुच्छा [उ०] गोयमा ! पढम-बितिया भंगा, एवं खलु सवत्थ पढम-बितिया भंगा; नवरं सम्मामिच्छत्तं मणजोगो वइजोगो य न पुच्छिजइ । एवं जाव-थणियकुमाराणं । बेई. द्वितीय उद्देशक. अनन्तरोपपन्न नैरयि- [अनन्तरोपपन्न नैरयिकादि चोवीश दंडकोने आश्रयी उक्त अगियार द्वारोबडे पापकर्मादिनी बन्धवक्तव्यता-1 कने पापकर्मनो बन्ध. १. [प्र०] हे भगवन् ! शुं अनन्तरोपपन्न नैरयिके पाप कर्म बांध्यु हतुं-इत्यादि पूर्ववत् पृच्छा. [उ.] हे गौतम ! कोइए बांध्यु हतु-इत्यादि पहेलो अने बीजो भांगो कहेवो.. २. [प्र०] हे भगवन् ! शुं लेश्यावाळा अनन्तरोपपन्न नैरयिके पापकर्म बांध्यु हतुं-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! अहीं पहेलो अने बीजो भांगो कहेवो. एम लेश्यादि बधा पदोमा पहेलो भने बीजो भांगो कहेवो. पण सम्यग्मिथ्यात्व (मिश्रदृष्टि ) मनो www.jainelibrary.org. Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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