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________________ आवलिका श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक २५.-उद्देशक ५. २. प्र० आवलिया णं भंते ! कि संखेजा समया, असंखेजा समया, अणंता समया? [उ०] गोयमा! नो संखेजा समया, असंखेजा समया, नो अणंता समया । ३. प्र०] आणापाणू णं भंते ! किं संखेजा.? [उ.] एवं चेव । ४. [प्र०] थोवे णं भंते ! कि संजा० ? [उ.] एवं चेव । एवं लवे वि; मुहुत्ते वि; एवं अहोरत्ते, एवं पक्ने, मासे, उऊ, अयणे, संवच्छरे, जुगे, वाससये, वाससहस्से, वाससयसहस्से, पुवंगे, पुवे, तुडियंगे, तुडिप, अडडंगे, अडडे, अववंगे, अववे, हुयंगे, हुहुए, उप्पलंगे, उप्पले, पउमंगे, पउमे, नलिणंगे, नलिणे, अच्छणिपूरंगे, अच्छणिपूरे, अउयंगे, भउये, नउयंगे, नउए, पउयंगे, पउए, चूलियंगे, चूलिए, सीसपहेलियंगे, सीसपहेलिया, पलिओवमे, सागरोवमे, ओसप्पिणी, एवं उस्सप्पिणी वि । ५. [प्र०] पोग्गलपरियट्टे णं भंते ! किं संखेज़ा समया, असंखेजा समया, अणंता समया-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! नो संखेजा समया, नो असंखेजा समया, अणंता समया। एवं तीयद्धा, अणागयद्धा, सधद्धा । ६. [प्र०] आवलियाओ णं भंते ! किं संखेजा समया-पुच्छा। [उ०] गोयमा ! नो संस्त्रेजा समया, सिय असंत्रेजा. समया, सिय अणंता समया। ७. [प्र०] आणापाणू णं भंते ! किं संखेजा समया ३ ? [उ०] एवं चेव । ८. [प्र०] थोवा णं भंते ! किं संखेजा समया ३ ? [उ०] एवं चेव । एवं जाव-'ओसप्पिणीओ' त्ति । ९. [प्र०] पोग्गलपरियट्टा णं भंते ! किं संखेजा समया-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! णो संखेजा समया, णो असंत्रेजा समया, अणंता समया। १०. [प्र०] आणापाणू णं भंते ! किं संखेजाओ आवलियाओ-पुच्छा। [उ०] गोयमा! संखेजाओ आवलियाओ, णो असंखेजाओ आवलियाओ, नो अणंताओ आवलियाओ । एवं थोवे वि, एवं जाव-'सीसपहेलिय' ति। . २. [प्र०] हे भगवन् ! आवलिका संख्याता समयरूप छे, असंख्याता समयरूप छे के अनंत समयरूप छे ? [उ०] हे गौतम ! आवलिका संख्याता समयरूप नथी, तेम अनंत समयरूप पण नथी, परंतु असंख्याता समयरूप छे. ३. [प्र०] हे भगवन् ! आनप्राण-श्वासोच्छ्रास ए शुं संख्याता समयरूप छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! पूर्व प्रमाणे जाणवू. ४. [प्र०] हे भगवन् ! स्तोक संख्याता समयरूप छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! एज प्रमाणे जाणवू. अने ए प्रमाणे लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन , संवत्सर, युग, सो वर्ष, हजार वर्ष, लाख वर्ष, पूर्वीग, पूर्व, त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग, अटट; अवांग, अवव, हूहूकांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अच्छनिपूरांग, अच्छनिपूर, अयुतांग, अयुत, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग, शीर्षप्रहेलिका, पल्योपम, सागरोपम, अवसर्पिणी अने उत्सर्पिणीना समयो संबंधे पण जाणवू. अर्थात्-एमांना प्रत्येकना असंख्याता समयो छे. ५. [प्र०] हे भगवन् ! पुद्गलपरिवर्त ए शुं संख्याता समयरूप छे, असंख्याता समयरूप छे के अनंत समयरूप छे! [उ०] हे गौतम ! ते संख्याता समयरूप नथी, असंख्याता समयरूप नथी, पण अनंत समयरूप छे. ए प्रमाणे भूतकाळ, भविष्यत्काळ तथा सर्वकाळ विषे पण जाणवु. ६. [प्र०] हे भगवन् ! आवलिकाओ \ संख्याता समयरूप छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम | आवलिकाओ संख्याता समयरूप नथी, पण कदाच असंख्याता समयरूप होय, अने कदाच अनंत समयरूप होय. ७. [प्र०] हे भगवन् ! आनप्राणो अ॒ संख्याता समयरूप छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] पूर्व प्रमाणे जाणवं. ८. [प्र०] हे भगवन् ! स्तोको शुं संख्याता समयरूप छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] पूर्व प्रमाणे जाणवू. अने ए प्रमाणे यावत्-अवसर्पिणीओ सुधी समजवू. ९. [प्र०] हे भगवन् ! पुद्गलपरिवर्तो ए शुं संख्याता समयरूप छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम! संख्याता समयरूप नथी, असंख्याता समयरूप नथी, पण अनंत समयरूप छे. १०. [प्र०] हे भगवन् ! आनप्राण ए शुं संख्याती आवलिकारूप छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! ते संख्याती आवलिकारूप. छे, पण असंख्याती के अनंत आवलिकारूप नथी. ए प्रमाणे स्तोक संबंधे पण जाणवू. यावत्-शीर्षप्रहेलिका सुधी पण एम जाणवू. । अश्छिणितपूरंगे अपिछणिउपूरे ग, अच्छिणिपूरंगे अस्किणिपूरे छ । भानप्राणादि. पुगटपरिवर्त. भावलिकाओ. भानप्राणो. स्त्रोको. पुछपरिवतो. मानप्राण. Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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