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________________ २३० श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे-- शतक २५.-उद्देशक ४. ९५. [प्र. निरेयस्स केवतियं कालं अंतरं होइ ? [उ०] गोयमा ! सट्टाणंतरं पडुश्च जहन्नेणं एक समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेजइभाग; परढाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एकं समयं उकोसेणं असंखेजं कालं। ९६. [प्र०] दुपएसियस्स णं भंते ! खंधस्स सेयस्स पुच्छा। [उ०] गोयमा! सट्टाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक समयं, उकोसेणं असंखेज़ कालं, परट्टाणंतरं पडुच जहन्नेणं एकं समयं, उकोसेणं अणंतं कालं। [प्र०] निरेयस्स केवतियं कालं अंतरं होइ ? [उ०] गोयमा ! सटाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एवं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेजइभागं, परदाणंतरं पडष्य जहन्नेणं एकं समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं । एवं जाव-अणंतपएसियस्स । __९७. [प्र०] परमाणुपोग्गलाणं भंते ! सेयाणं केवतियं कालं अंतर होइ ? [उ०] गोयमा ! नत्थि अंतरं । [प्र०] निरेयाणं केवतियं कालं अंतर होइ? [उ०] गोयमा ! नत्थि अंतरं । एवं जाव-अणंतपएसियाणं खंधाणं । ९८. [प्र०] एएसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं सेयाणं, निरेयाण य कयरे कयरेहिंतो जाव-विसेसाहिया वाउ. गोयमा! सवत्थोवा परमाणुपोग्गला सेया, निरेया असंखेजगुणा, एवं जाव-असंखिजपएसियाणं खंधाणं । ९९. [प्र०] एएसि णं भंते ! अणंतपएसियाणं खंधाणं सेयाणं, निरेयाण य कयरे कयरे जाव-विसेसाहिया वा? [उ.] गोयमा ! सवत्थोवा अणंतपएसिया खंधा निरेया, सेया अणंतगुणा । १००. [प्र०] एएसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं संखेजपएसियाणं, असंखेजपएसियाणं, अणंतपएसियाण य खंधाणं सेयाणं निरेयाण य दधट्टयाए पएसट्टयाए दवट्ठपएसट्टयाए कयरे कयरे० जाव-विसेसाहिया वा ? [उ०] गोयमा! सवत्थोवा निष्कम्प परमाणु ९५. [प्र०] हे भगवन् ! निष्कंप परमाणुपुद्गलनु केटळा काळनुं अंतर होय !-निष्कंप परमाणुपुद्गल कंपीने पाछो केटले अन्तर. काळे निष्कंप थाय ! [उ०] हे गौतम ! खस्थानने आश्रयी जघन्य एक समय अने उत्कृष्ट आवलिकाना असंख्य भागनुं तथा परस्था नने आश्रयी जघन्य एक समय अने उत्कृष्ट असंख्य काळजें अंतर होय. सकम्प अने निष्कम्प ९६. [प्र०] हे भगवन् ! सकम्प बे प्रदेशवाळा स्कंधने केटला काळजें अंतर होय ! [उ०] हे गौतम ! विस्थाननी अपेक्षाए दिप्रदेशिकादि स्कधनुं अन्तर. जघन्य एक समयनु अने उत्कृष्ट असंख्यात काळनु तथा परस्थाननी अपेक्षाए जघन्य एक समयनुं अने उत्कृष्ट अनंत काळजें अंतर होय. निष्कम्प विप्रदेशि [प्र०] हे भगवन् ! बे प्रदेशवाळा निष्कंप स्कंधने केटला काळजें अंतर होय ! [उ०] हे गौतम ! स्वस्थाननी अपेक्षाए जघन्य एक कादि स्कन्धर्नु अन्तर. समयनुं अने उत्कृष्ट आवलिकाना असंख्य भागर्नु तथा परस्थाननी अपेक्षाए जघन्य एक समयनुं अने उत्कृष्ट अनंत काळजें अंतर होय. ए प्रमाणे यावत्-अनंतप्रदेशिक स्कंध सुधी जाणवु. ९७. [प्र०] हे भगवन् ! सकम्प परमाणुपुद्गलोर्नु केटला काळy अंतर होय ! [उ०] हे गौतम ! तिओनुं अंतर नथी. [प्र०] निष्कंप परमाणुपुद्गलोर्नु केटलं अंतर होय ? [उ०] हे गौतम! अंतर नथी. ए प्रमाणे यावत्-अनंतप्रदेशिक स्कंधो सुधी जाणवू. सकंप अने निष्कंप ९८. [प्र०] हे भगवन् ! पूर्वोक्त सकंप अने निष्कंप परमाणुपुद्गलोमां कया परमाणुपुद्गलो कोनाथी यावत्-विशेषाधिक होय परमाणुओनु अल्प "बहुत्व. छे! [उ०] हे गौतम ! सकम्प परमाणुपुद्गलो सौथी थोडां छे, अने निष्कंप परमाणुपुद्गलो असंख्यातगुणां छे. ए प्रमाणे यावत्-असंख्यात असंख्यात प्रदेशिक प्रदेशवाळा स्कंधो सुधी जाणवू. सकम्प अने निष्कम्प ९९. [प्र०] हे भगवन् ! ए पूर्वोक्त सकम्प अने निष्कंप अनंत प्रदेशवाळा स्कंधोमां कया स्कन्धो कोनाथी यावत्-विशेषाधिक अनन्त प्रदेशिक " छे ! [उ०] हे गौतम ! अनंत प्रदेशवाळा निष्कंप स्कंधो सौथी थोडा छे, अने तेथी अनंत प्रदेशवाळा सकंप स्कंधो अनंतगुण छे. बहुत्व. १००. [प्र०] हे भगवन् ! ए सकंप अने निष्कंप परमाणुपुद्गलो, संख्यात प्रदेशवाळा स्कंधो, असंख्यात प्रदेशवाळा स्कंधो अने अल्पबहुत्व. अनंत प्रदेशवाळा स्कंधोमां द्रव्यार्थपणे, प्रदेशार्थपणे तथा द्रव्यार्थप्रदेशार्थपणे कया पुद्गलो कोनाथी यावत्-विशेषाधिक छे ! [उ०] हे गौतम ! १ "अनंत प्रदेशवाळा निष्कंप स्कंधो द्रव्यार्थपणे सौथी थोडा छे. २ तेथी अनंत प्रदेशवाळा सकंप स्कंधो द्रव्यार्थपणे अनं ९५. * च्यारे परमाणु निश्चल-स्थिर थईने जघन्य एक समय पर्यन्त परिभ्रमण करी पुनः स्थिर थाय अने उत्कृष्ट आवलिकाना असंख्यातमा भागरूप असंख्य समय पर्यन्त परिभ्रमण करी पुनः स्थिर थाय त्यारे खस्थानने आश्रयी जघन्य समय अने उत्कृष्ट आवलिकानो असंख्यातमो भाग अन्तर होय. परमाणु निश्चल थई पोताना स्थानथी चलित थाय अने जघन्य एक समय पर्यन्त द्विप्रदेशादि स्कन्धरूपे रहीने पुनः निश्चल थाय अने उत्कृष्ट असं. ख्यात काळ सुधी द्विप्रदेशादि स्कन्धरूपे रही तेथी जुदो थईने स्थिर थाय त्यारे परस्थानने आश्रयी जघन्य अने उत्कृष्ट अन्तर होय. द्विप्रदेशिक स्कन्ध चलित थईने अनन्त काळपर्यन्त उत्तरोत्तर वीजा अनन्त पुद्गलोनी साथे संबन्ध करतो पुनः तेज परमाणुनी साथे संबद्ध थईने पुनः चाले त्यारे परस्थानने आश्रयी उत्कृष्ट अनन्त काळजें अन्तर होय.-टीका.' ९७१ सकम्प परमाणुपुद्गलो लोकमा सर्वदा विद्यमान होवाथी तेने विषे अन्तर होतुं नथी. १०० ॥ परमाणुपुद्गलो, संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक अने अनन्तप्रदेशिक स्कन्धोना सकंप भने निष्कम्प पक्षना द्रव्यार्थरूपे आठ विकल्प थाय छ, ए प्रमाणे प्रदेशार्थरूपे पण आठ विकल्प थाय छे. उभयार्थरूपे चौद विकल्पो थाय छे, कारण के सकम्प भने निष्कम्प परमाणुओना द्रव्यार्थता अने प्रदेशार्थता पदने बदळे द्रव्यार्थाप्रदेशार्थता रूप एकज पद कहे. एटळे सोळ विकल्पना बदले चौद विकल्पो थाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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