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________________ परमाणुथी आरंभी अनन्त प्रदेशिक सन्धोनुं अल्पबहुत्व. प्रदेशावगाढ पुगटोनुं अल्पबहुत्व. एक समयादि स्थि तियाळा पुद्गलोनुं अल्पबहुत्व. श्रीरायचन्द्र - जिनागम संग्रहे - शतक २५. - उद्देशक ४. ५४. [ प्र० ] एसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं संखेजपरसियाणं, असंखेजपर सियाणं, अनंतपएसियाण य खंधाणं दधट्टयाए परसट्टयाए घट्टपरसट्टयाए कयरे कयरे० जाव-विसेसाहिया वा ? [ उ०] गोयमा ! सवत्थोवा अणतपपलिया खंधा दचट्टयाए, परमाणुपोग्गला दघट्टयाए अनंतगुणा, संखेजपपसिया खंधा दधट्टयाए संखेजगुणा, असंखेज्जपरसिया खंधा दष्वट्टयाए असंखेज्जगुणा; पएसट्टयाए - सवत्थोवा अणतपएसिया खंधा परसट्टयाए, परमाणुपोग्गला अपपसट्टयाए अनंतगुणा, संखेजपरसिया खंधा परसट्टयाए संखेजगुणा, असंखेजपरसिया खंधा परसट्टयाए असंखेज्जगुणाः दधट्टपरसट्टयाए - सधत्थोवा अणतपसिया खंधा दधट्टयाए, ते चैव परसट्टयाए अनंतगुणा, परमाणुपोग्गला दधट्ठपएसट्टयाए अनंतगुणा, संखेजपरसिया संधा दट्टयाए संखेजगुणा, ते चेव परसट्टयाए संबेज्जगुणा, असंखेजपरसिया संधा दष्वट्टयाए असंखे जगुणा, ते चेव परसट्टयाए असंखेजगुणा । २२४ ५५. [प्र० ] एसि णं भंते ! एगपएसोगाढाणं, संखेजपरसोगाढाणं, असंखेजपरसोगाढाण य पोग्गलाणं दधट्टयाए पएसट्टयाए दष्धट्ठपएसट्टयाए कयरे कयरे० जाव विसेसाहिया वा ? [ उ०] गोयमा ! सवत्थोवा एगपरसोगाढा पोग्गला दवट्टयाए, संखेजपरसोगाढा पोग्गला दबट्टयाए संखेजगुणा, असंखेजपरसोगाढा पोग्गला दवट्टयाए असंखेजगुणा, पपसट्टयाएसत्थोवा एगपएसोगाढा पोग्गला अपएसट्टयाए, संखेजपरसोगाढा पोग्गला परसट्टयाए संखेज्जगुणा, असंखेजपरसोगाढा पोग्गला पसट्टयाए असंखेजगुणा; दघट्टपरसट्टयाए - सवत्थोवा एगपएसोगाढा पोग्गला दैट्ठअपदेसट्टयाए, संखेजपरसोगाढा पोग्गला दट्टयाए संखेजगुणा, ते चेव परसट्टयाए संखेजगुणा, असंखेज परसोगाढा पोग्गला दधट्टयाए असंखेजगुणा, ते चैव पपट्टयाए असंखेजगुणा । ५६. [ प्र० ] एसि णं भंते । एगसमयद्वितीयाणं, संखेजसमयद्वितीयाणं, असंखेजसमयद्वितीयाण य पोग्गलाणं० १ [30] जहा भोगाद्दणाए तथा ठितीए वि भाणियां अप्पा बहुगं । ५४. [प्र० ] हे भगवन् ! परमाणुपुद्गलो संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक अने अनंतप्रदेशिक स्कंधोमां द्रव्यार्थरूपे, प्रदेशार्थरूपे अने द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थरूपे कयां पुद्गलस्कन्धो कोनाथी यावत्-विशेषाधिक छे ! [उ०] हे गौतम ! द्रव्यार्थरूपे सौथी थोडा अनंतप्रदेशिक स्कंधो छे. तेथी परमाणु पुद्गलो द्रव्यार्थरूपे अनंतगुण छे, तेथी संख्यातप्रदेशिक स्कंधो द्रव्यार्थरूपे संख्यातगुण छे, तेथी असंख्यातप्रदेशिक स्कंधो द्रव्यार्थरूपे असंख्यातगुण छे. प्रदेशार्थरूपे - अनंतप्रदेशवाळा स्कंधो प्रदेशार्थरूपे सौथी थोडा छे, तेथी परमाणुपुद्गलो * अप्रदेशार्थरूपे अनंतगुण छे, तेथी संख्यातप्रदेशिक स्कंधो प्रदेशार्थरूपे संख्यातगुण छे, तेथी असंख्यातप्रदेशिक स्कंधो प्रदेशार्थरूपे असंख्यातगुण छे, द्रव्यार्थरूपे - अनंतप्रदेशिक स्कंधो द्रव्यार्थरूपे सौथी थोडा छे, अने तेज स्कंधो प्रदेशार्थरूपे अनंतगुण छे; तेथी परमाणुपुद्गलो द्रव्यार्थ - अप्रदेशार्थरूपे अनंतगुण छे, तेथी संख्यातप्रदेशिक स्कंधो द्रव्यार्थरूपे संख्यातगुण छे, अने तेथी तेज स्कंधो प्रदेशार्थरूपे संख्यातगुण छे, तेथी असंख्यातप्रदेशिक स्कंधो द्रव्यार्थरूपे असंख्यात गुण छे, अने तेथी ते ज स्कंधो प्रदेशार्थरूपे असंख्यातगुण छे. ५५. [ प्र० ] हे भगवन् ! एक प्रदेशमां रही शके तेवा, संख्यात प्रदेशमां रही शके तेवा अने असंख्यात प्रदेशमां रही शके तेवा ए पुद्गलोमां द्रव्यार्थपणे, प्रदेशार्थपणे अने द्रव्यार्थ - प्रदेशार्थपणे कया पुगलो कोनाथी यावत्- विशेषाधिक छे ? [उ०] हे गौतम! एक प्रदेशमां रही शके तेवा पुद्गलो द्रव्यार्थरूपे सौथी थोडां छे, तेथी संख्यात प्रदेशमां रही शके तेवा पुद्गलो द्रव्यार्थरूपे संख्यातगुण छे, तेथी असंख्यात प्रदेशमां रही शके तेवा पुद्गलो द्रव्यार्थरूपे असंख्यातगुण छे. प्रदेशार्थरूपे - एक प्रदेशमां रही शके तेवा पुद्गलो अप्रदे शार्थपणे सौथी थोडां छे, तेथी संख्याता प्रदेशमा रही शके तेवा पुद्गलो प्रदेशार्थरूपे संख्यातगुण छे, तेथी असंख्यात प्रदेशमा रहेला पुलो प्रदेशार्थरूपे असंख्यातगुण छे. द्रव्यार्थ - प्रदेशार्थरूपे - एक प्रदेशमां रही शके तेथा पुद्गलो द्रव्यार्थ - अप्रदेशार्थरूपे सौथी थोडां छे, तेथी संख्याता प्रदेशमां रही शके तेवा पुद्गलो द्रव्यार्थरूपे संख्यातगुण छे, अने तेज पुद्गलो प्रदेशार्थरूपे संख्यातगुण छे, तेथी असंख्यात प्रदेशमां रही शके तेवा पुद्गलो द्रव्यार्थरूपे असंख्यातगुण छे अने ते तेथी तेज पुद्गलो प्रदेशार्थरूपे असंख्यातगुण छे. ५६. [प्र०] हे भगवन् ! एक समयनी स्थितिवाळा, संख्यात समयनी स्थितिवाळा अने असंख्यात समयनी स्थितिवाळा ए पुद्रलोमा कयां कोनाथी यावत्-विशेषाधिक छे ? [ उ० ] जेम अवगाहना संबंधे अल्पबहुत्व कहां छे, तेम स्थिति संबन्धे पण अल्पबहुत्व कहे . Jain Education International १ पएसहयाए गङ। २ असंखेज छ । ३ दुब्वट्टप्पएस ङ । ७४ * परमाणु अप्रदेशी होवाथी एटले तेने प्रदेश नहि होवाथी अप्रदेशार्थरूपे अनन्तगुण कह्या छे. + परमाणुओ द्रव्यनी विवक्षामां द्रव्यरूप छे अने प्रदेशविवक्षामां तेने प्रदेशो नहि होवाथी द्रव्यार्थ - अप्रदेशार्थरूपे अनन्तगुण कथा छे. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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