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________________ २२२ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंप्रहे शतक २५.-उद्देशक ४.. ४३. [प्र० एपसि णं भंते ! दुपएसियाणं तिप्पएसियाण य खंधाणं दखट्टयाए कयरे कयरेहितो बहुया १० गोयमा ! तिपएसिपदितो खंधेदितो दुपएसिया खंधा दषट्टयाए बहुया, एवं एएणं गमएणं जाव-दसपएसिपहितो खंधे. हिंतो नवपएसिया खंधा दवट्याए बहुया। ४४. [प्र०] एएसि णं भंते ! दसपएसिए०-पुच्छा [उ०] गोयमा! दसपएसिपहिंतो खंधेहितो संखेजपएसिया खंधा दवट्ठयाए बहुया। ४५. [प्र०] एएसि णं भंते ! संखेज-पुच्छा । [उ०] गोयमा! संखेजपएसिपहिंतो खंधेहितो असंलेजपएसिया खंधा दछट्टयाए बहुया। ४६. एएसि णं भंते ! असंखेज-पुच्छा। [उ०] गोयमा ! अणंतपएसिएहिंतो खंधेहिंतो असंखेजपएसिया खंधा दट्टयाए बहुया। ___४७. [प्र०] एएसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं दुपएसियाण य खंधाणं पएसट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो बहुया ? [उ.] गोयमा! परमाणुपोग्गलहितो दुपएसिया खंधा पएसट्टयाए बहुया । एवं एएणं गमएणं जाव-नवपएसिपहितो खंधेहितो दसपएसिया खंधा पपसट्टयाए बहुया; एवं सम्वत्थ पुच्छियत्वं । दसपपसिएहिंतो खंधेहिंतो संखेजपएसिया खंधा पएस. ट्रयाए बहुया । संखेजपएसिएहितो खंधेहितो असंखेजपएसिया खंधा पएसट्टयाए बहुया। ४८. [प्र०] एएसि णं भंते ! असंखेजपएसियाणं-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! अणंतपएसिएहिंतो खंधेहितो असंखेजपएसिया खंधा पएसट्टयाए बहुया । ४९. एएसि णं भंते ! एगपएसोगाढाणं दुपएसोगाढाण य पोग्गलाणं दचट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो जाव-विसेसाहिया वा ? [उ.] गोयमा! दुपएसोगाढेहितो पोग्गलहितो एगपएसोगाढा पोग्गला दट्टयाए विसेसाहिया । एवं एएणं गमएणं द्विप्रदेशिक अने त्रि- ४३. [प्र० हे भगवन् ! ए द्विप्रदेशिक स्कंध अने त्रिप्रदेशिक स्कंध एमां द्रव्यार्थपणे कया पुद्गलस्कन्धो कोनाथी यावत्-विशेपा धिक छे ! [उ०] हे गौतम 1 त्रिप्रदेशिक स्कंधो करता *द्विप्रदेशिक स्कंधो द्रव्यार्थपणे घणा छे. ए प्रमाणे ए गमक-पाठ वडे यावत्-दश अल्पबहुस्व. प्रदेशवाळा स्कंधो करतां नव प्रदेशवाळा स्कंधो द्रव्यार्थपणे घणा छे. दशप्रदेशिक अने सं: ४४. [प्र०] हे भगवन् ! दश प्रदेशवाळा स्कंधो संबंधे पूर्व प्रश्न, [उ०] हे गौतम ! दश प्रदेशवाळा स्कंधो करतां संख्यात ख्यात प्रदेशिकर्नु र अल्पबहुत्व प्रदेशवाळा स्कंधो द्रव्यार्थरूपे घणा छे. संख्यात प्रदेशिक अ- ४५. [प्र०] हे भगवन् ! ए संख्यात प्रदेशवाळा स्कंधो संबंधे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! संख्यात प्रदेशिक स्कंधो करतां असंख्यात ने असंख्यात प्रदेशिक स्कन्धर्नु प्रदेशिक स्कंधो द्रव्यार्थपणे घणा छे. अल्पबहुत्व. असंख्यात प्रदेशिक ४६. [प्र०] हे भगवन् ! ए असंख्यात प्रदेशिक स्कंधो संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम! द्रव्यार्थ रूपे अनंत प्रदेशिक स्कंधो भने अनन्त प्रदेशिक । करता असंख्यात प्रदेशिक स्कंधो घणा छे. बहुत्व. परमाणु मने विप्रदे- ४७. [प्र०] हे भगवन् । परमाणु पुद्गल अने द्विप्रदेशिक स्कंधमा प्रदेशार्थरूपे कया कया शाथी यावत्-विशेषाधिक छे ? [उ०] शिक स्कन्धन प्रदे. हे गौतम ! प्रदेशार्थरूपे परमाणुपुद्गलो करतां द्विप्रदेशिक स्कंधो घणा छे. एम आ पाठ वडे यावत्-नव प्रदेशिक स्कंधो करतां दश शार्थरूपे अल्प " प्रदेशिक स्कंधो प्रदेशार्थरूपे घणा छे. ए रीते सर्वत्र प्रश्न करवो. दश प्रदेशिक स्कंधो करतां संख्यात प्रदेशवाळा स्कंधो प्रदेशार्थरूपे घणा छे. संख्यात प्रदेशवाळा स्कंधो करतां असंख्यात प्रदेशिक स्कंधो प्रदेशार्थरूपे घणा छे. असंख्यात प्रदेशिक ४८. [प्र०] हे भगवन् ! ए असंख्यात प्रदेशिक स्कंधो संबंधे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! अनंत प्रदेशिक स्कंधो करतां असंख्य अने अनन्तप्रदेशि- स प नार्थपणे पणा के. कर्नु अल्पबदुत्व. प्रदेशावगाढ पुद्ग- ४९. [प्र०] हे भगवन् ! एक प्रदेशमा रहेला अने बे प्रदेशमा रहेला पुद्गलोमां द्रव्यार्थरूपे कया कोनाथी यावत्-विशेषाधिक छ ? नु द्रव्यरूपे उ० हे गौतम ! बे प्रदेशमा रहेला पुद्गलो करतां एक प्रदेशमा रहेला पुद्गलो द्रव्यार्थरूपे विशेषाधिक छे. ए प्रमाणे ए पाठवडे त्रण अल्पबदुत्व. ४३ * ह्यणुक करता परमाणुओ सूक्ष्मपणाथी अने एक होवाथी घणा छे, द्विप्रदेशिक स्कन्धो परमाणु करता स्थूल होवाथी थोडा छे. एम पछीना सूत्र माटे जाणवू. पूर्व पूर्वनी संख्या बहु छे अने पछी पछीनी थोडी छे. पण दशप्रदेशिक स्कन्धो करता संख्यात प्रदेशिक स्कन्धो घणा छे. कारण के संख्यातना घणा स्थानो होय छे. संख्यात प्रदेशिक स्कन्ध करता असंख्यात प्रदेशिक स्कन्धो घणा छे, कारण के, संख्यातप्रदेशिक करतां असंख्यातना घणा स्थानो होय छे. परंतु असंख्यात प्रदेशिक स्कन्धो करता अनन्त प्रदेशिक स्कन्धो थोडा छे. कारण के तेनो तथाविध सूक्ष्म परिणाम थाय छे.-टीका. ४९ । परमाणुथी मांटी अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध सुधी एक प्रदेशावगाढ होय छे अने पणुकथी मांडी अनन्ताणु स्कन्ध सुधी बे प्रदेशावगाढ होय छ. एम त्रिप्रदेशिक स्कन्धथी आरंभी अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध सुधी त्रिप्रदेशावगाढ होय छे. ए प्रमाणे चतुःप्रदेशावगाढ, यावत्-असंख्य प्रदेशावगाढ स्कन्धो जाणवा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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