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________________ वृत संस्थान साथै परिमंडलादिनो संबन्ध. रतप्रभामां परिमं लादि संस्थानो. श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंप्रहे शतक २५. - उद्देशक ३. १५. [प्र० ] जत्थणं मंते 1 एगे बट्टे संठाने जवमज्झे तत्थ परिमंडला संडाणा ० १ [30] एवं चैव, बट्टा संठाणा एवं वेध एवं जायभायता एवं एकेकेणं संडाणेणं पंच वि चारेयष्ठा । २०६ १६. [प्र० ] जत्थणं ते! इमीले रयणप्पभाष पुढबीए एगे परिमंडले संठाने जवमज्झे तत्व नं परिमंडला संठाणा किं संखेज्जा- पुच्छा । [उ०] गोयमा ! नो संखेजा, नो असंखेज्जा, अनंता । [ प्र० ] बट्टा णं भंते! संठाणा कि संखेज्जी - १ [३०] एवं चेव, एवं जाव- आयता । १७. [प्र०] जत्थ णं भंते! इमीसे रयणप्पभार पुढवीए एगे वट्टे संठाणे जवमज्झे तत्थ णं परिमंडला संठाणा किं संजा० - पुच्छा। [४०] गोयमा जो संसेजा, नो असंलेजा, अनंता । वट्टा संठाणा एवं चेव, एवं जाव आयता एवं पुणरवि एक्केक्केणं संठाणेणं पंच वि चारेयचा जहेव हेट्ठिल्ला, जाव- आयतेणं, एवं जाव - अहेसत्तमाप, एवं कप्पेसु वि, जाव- ईसीपम्भारा पुढवीण । १८. [अ०] बट्टे णं भंते! संठाणे कतिपदेसिए कतिपदेसोगाढे पन्नत्ते ? [30] गोयमा ! वट्टे संठाणे दुविहे पनचे, तं जहा - घणवट्टे य पयरवट्टे य । तत्थ णं जे से पयरवट्टे से दुविहे पन्नत्ते, तंजहा - ओयपरसिए य जुम्मपपसिए य । तत्थ णं जे से ओयपरसिए से जहणं पंचपरखिए, पंचपरसोगाडे, उकोलेणं अनंतपपलिए, असंखेजपरसोमाटे । तत्थ णं जे से जु म्मपरसिए से जहणं वारसपरसिए, बारसपरसोगाढे; उक्कोसेणं अणतपयसिप, असंखेनपरसोगा। तस्य णं जे से घणबट्टे से दुबिहे पनते, संजदा-ओवपरसिए व तुम्मपणसिए य तत्थ णं जे से ओयपपसिए से जणं सत्तपयसिप सप्तपपसोगाढे पन्नत्ते, उक्कोसेणं अणतपरसिए असंखेजपरसोगाढे पन्नत्ते । तत्थ णं जे से जुम्मपरसिए से जहनेणं बत्तीसपपसिए बत्तीसपरसोगाढे पन्नत्ते, उक्कोसेणं अणतपएसिए असंखेजपरसोगाढे । १५. [प्र०] हे भगवन् ! ज्यां (यवाकृति निष्पादक ) एक वृत्त संस्थान छे त्यां परिमंडल संस्थानो केटलां छे ! [उ०] पूर्वे का प्रमाणे जाणवुं त्वां वृत्त संस्थानो पण एज प्रमाणे अनन्त समजवा. ए प्रमाणे यावत् आगत संस्थान सुधी जाणवुं. एक एक संस्थान साथै पांचे संस्थानोनो संबन्ध विचारखो. १६. [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीमां ज्यां यवाकारनिष्पादक एक परिमंडल संस्थान समुदाय छे त्यां बीजा परिमंडल संस्थानो झुं संख्याता इत्यादि प्रश्न. [३०] हे गौतम! संख्याता नयी, पण अनंत छे. [प्र०] हे भगवन् ! वृत्त संस्थानो शुं संख्याता छे- इत्यादि प्रश्न. [उ० ] ए प्रमाणे ( अनंत ) छे. एम यावत्-आयत सुधी जाणवुं. १७. [प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभा पृथिवीमां ज्यां एक ( यवाकृतिनिष्पादक ) वृत्तसंस्थानसमुदाय होय छे त्यां परिमंडल संस्थानो शुं संख्याता - इत्यादि प्रश्न. [३०] हे गौतम! संख्याता नथी, असंख्याता नयी, पण अनंत छे. वृत्त संस्थानो पण एज प्रमाणे जाणवा. एम आयत संस्थान सुधी समजवुं. वळी ए प्रमाणे पूर्वे का प्रमाणे अहिं फरीने पण एक एक संस्थान साथै पांचे संस्थानो संस्थान सुधी विचार करवो, तथा यावत् — अधःसप्तम पृथिवी, कल्पो अने ईषत्प्राग्भारा पृथिवीने विषे पण समजवुं. वृत्तसंस्थान केटा १८. [१०] हे भगवन् ! वृत्त संस्थान केटा प्रदेशवालुं छे अने केटला आकाश प्रदेशमां अवगाढ रहे छे! [उ०] है गौतम 1 प्रदेशवाकुं अने वृत्त संस्थान बे प्रकारनुं कर्तुं छे, ते आ प्रमाणे- * घनवृत्त अने प्रतरवृत्त. तेमां जे प्रतरवृत्त छे, ते बे प्रकारनुं कह्युं छे, ते आ प्रमाणेकेटला प्रदेशमां अवगाढ होय ! ओजप्रदेशवाळु - एकीसंख्यावाळु अने युग्मसंख्याप्रदेशवाळु - बेकी संख्यावाकुं. तेमां जे ओजप्रदेशवाळु प्रतरवृत्त छे ते जघन्यथी पांच प्रदेशमा अने पांच आकाश प्रदेशमां अपगाट छे, तथा उत्कृष्ट अनंत प्रदेशचालु अने असंख्यात आकाशप्रदेशमां अवगाढ छे. तेमां जे युग्मप्रदेशवा प्रतरवृत्त के ते जघन्य बार प्रदेशवालुं भने चार आकाश प्रदेशमां अवगाढ छे, तथा उत्कृष्ट अनंत प्रदेशमा अने असंख्यात आकाशप्रदेशमां अवगाड छे. तेमां जे धनवृत्त छे ते वे प्रकारनं कनुं छे, ते आ प्रमाणे ओजप्रदेशिक एकसंख्यावा अने युग्मप्रदेशिक—बेकी संख्यावाळु. तेमां जे ओजप्रदेशिक घनवृत्त छे ते जघन्य सात प्रदेशवाळु अने सात आकाश प्रदेशमां अवगाढ छे, भने उत्कृष्ट अनंत प्रदेशवा अने असंख्यात आकाश प्रदेशमां अयगाढ छे. तेमां जे युग्मप्रदेशिक घनवृत्त के ते जघन्य बत्रीश प्रदेशया अने बीश आकाश प्रदेशमा अवगाढ छे, अने उत्कृष्टची अनंत प्रदेशवाळु अने असंख्य आकाश प्रदेशमां अवगाट छे. १ 'पुच्छा गोथमा ! नो संखेजा, नो असंखेज्जा, अनंता' - इति घपुस्तके । १८ * दडानी पेठे सर्व बाजु समप्रमाण ते घनवृत्त अने मांडानी पेठे मात्र जाडाइमां ओधुं होय ते प्रतरवृत्त. ओजप्रदेशिक प्रतरवृत्त :: आ प्रमाणे पांच प्रदेश भने युग्मप्रदेशिक प्रतरक्त आ प्रमाणे वार प्रवेशोनुं होय छे. ओज प्रवेशिक धनवृत्त एक मध्य परमाणुनी नीचे एक परमाणु अने उपर एक परमाणु, तथा तेनी चारे बाजु चार परमाणुओ एम ए जघन्य सात प्रदेशोनुं छे. ते आ प्रमाणे. - ० ० + युग्मप्रदेशिक पनत बीश प्रदेशोनुं होय . सेम प्रथम आ प्रमाणे बार प्रदेशोनो प्रतर स्थापनो, सेना उपर एक रीठे बीजों बार प्रदेशोनो प्रतर मूकवो अने बन्ने प्रतरना मध्य भागना चार चार अणुओनी उपर बीजा चार अणुओ मूकवा. ए रीते बत्रीश प्रदेशोनो युग्मप्रदेशिक घनवृत थाय छे. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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