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________________ योगना प्रकार श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे - शतक २५. – उद्देशक १. ४. [प्र० ] दो भंते ! नैरतिया पढमसमयोववन्नगा किं समजोगी, किं विसमज़ोगी ? [30] गोयमा ! सिय समजोगी, सिय विसमजोगी । [ प्र०] से केणद्वेणं भंते ! एवं वुश्चति - ' सिय समजोगी, सिय विसमजोगी' ? [30] गोयमा ! आहारयाओ वा से अणाहारप, अणाहारयाओ वा से आहारए सिय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अन्भहिए । जइ हीणे असंखेजभागही वा, संखेजइभागहीणे वा, असंखेजगुणहीणे वा, संखेज्जगुणहीणे वा । अह अन्भहिए असंखेजइभागमम्भहिए वा, संखेजइभागमब्भहिए वा, संखेजगुणमन्भहिए वा, असंखेजगुणमन्भहिए वा, से तेणट्टेणं जाव- सिय 'विसमजोगी' । एवं जाव-वेमाणियाणं । बोगनुं वप २०० ५. [प्र० ] कतिविद्दे णं भंते! जोए पत्ते १ [उ०] गोयमा ! पन्नरसविहे जोए पश्नत्ते, तंजहा - सच्चमणजोए १, मोसमणजोए २, सच्चा मोसमणजोए ३, असश्चामोसमणजोए ४, सचवइजोप ५, मोसवइजोप ६, सभ्यामोसवइजोए ७, असच्चामोसजोए ८, ओरालियसरीरकायजोप ९, ओरालियमीसासरीरकायजोए १०, वेउष्ठियसरीरकायजोए ११, वेउचियमीसासरीरकायजोगे १२, आहारगसरीरकायजोगे १३, आहारगमीसासरीरका यजोगे १४, कम्मासरीरकायजोगे १५ । प्रथम समयम ४. [प्र० ] हे भगवन् ! प्रथम समये उत्पन्न थयेला बे नैरयिको समान योगवाळा होय के विषम योगवाळा होय ? [30] चिकने माश्रयी योग. हे गौतम! तेओ कदाच समान योगवाळा होय अने कदाच विषम योगवाळा पण होय. [प्र० ] हे भगवन् ! शा हेतुथी म नैर छे के तेओ कदाच समान योगवाळा होय अने कदाच विषम योगवाळा होय ! [उ०] हे गौतम! #आहारक नारकथी अनाहारक नारक अने अनाहारकथी आहारक नारक कदाच हीन योगवाळो, कदाच तुल्य योगवाळो अने कदाच अधिक योगवाळो होय. अर्थात् आहारक नारकथी अनाहारक नारक हीन योगवाळो, अनाहारकथी आहारक नारक अधिक योगवाळो, भने बन्ने आहारक के बने अनाहारक नारको परस्पर तुल्य योगवाळा होय. जो हीनयोगवाळो होय तो ते असंख्यातमा भाग हीन, संख्यातमा भाग हीन, संख्यातगुण हीन के असंख्यात गुण हीन होय. जो अधिक योगवाळो होय तो असंख्यातमा भाग अधिक, संख्यातमा भाग अधिक, संख्यात गुण अधिक के असंख्यात गुण अधिक होय छे. ते कारणथी यावत्-ते कदाच विषम योगवाळो पण होय. ए प्रमाणे वैमानिको सुची जाणवुं. ते ६. [अ०] यस्स णं भंते! पन्नरसविहस्स जहन्नुकोसगस्स कयरे कयरे० जाव-विसेसाहिया वा ? [ उ०] गोयमा ! सवत्थोवे कम्मगसरी रगस्स जहन्नएजोए १, ओरालियमीसगस्स जहन्नए जोप असंखेजगुणे २, वेडवियमीसगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे ३, ओरालियसरीरगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे ४, वेउधियसरीरस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे ५, कम्मगसरीरस्स उक्कोसप जोए असंखेज्जगुणे ६, आहारगमीसस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे ७, तस्स चेव उक्कोसप जोए असंखेजगुणे ८, ओरालियमीसगस्स, वेउच्चियमीसगस्स य एएसि णं उक्कोसए जोप दोण्हवि तुल्ले असंखेजगुणे ९-१०, असश्चामोसमणजोगस्स जहन्नए जोए असंखेजगुणे ११, आहारगसरीरस्स जहन्नए जोए अंसेखज्जगुणे १२, तिविहस्स मणजोगस्स चउ ५. [प्र०] हे भगवन् ! केटला प्रकारनो योग कह्यो छे ? [उ०] हे गौतम! पंदर प्रकारनो योग कह्यो छे, ते आ प्रमाणे१ सत्य मनोयोग, २ मृषा मनोयोग, ३ सत्यमृषा मनोयोग, ४ असत्यामृषा मनोयोग, ५ सत्य वचनयोग, ६ असत्य वचनयोग, ७ सत्यमृषा वचनयोग, ८ असत्यामृषा वचनयोग, ९ औदारिकशरीर काययोग, १० औदारिकमिश्रशरीरकाययोग, ११ वैक्रिय शरीरकाययोग, १२ वैक्रियमिश्रशरीरकाययोग, १३ आहारकशरीरकाययोग, १४ आहारकमिश्रशरीरकाययोग अने १५ कार्मणशरीरकाययोग. ६. [प्र०] हे भगवन् ! जघन्य अने उत्कृष्ट पंदर प्रकारना योगमां कयो योग कोनाथी यावत्-विशेषाधिक छे ! [उ०] हे गौतम! कार्मण शरीरनो जघन्य योग सौथी अल्प छे १, तेथी औदारिकमिश्रनो जघन्य योग असंख्यात गुण छे २, तेथी वैक्रियमिश्रनो जघन्य योग असंख्यात गुण छे ३, तेथी औदारिक शरीरनो जघन्य योग असंख्यात गुण छे ४, तेथी वैक्रिय शरीरनो जघन्य योग असंख्यात गुण के ५, तेथी कार्मण शरीरनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण छे ६, तेथी आहारकमिश्रनो जघन्य योग्य असंख्यातगुण छे ७, तेथी आहारकशरीरनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण छे ८, तेथी औदारिकमिश्र अने वैक्रियमिश्रनो उत्कृष्ट योग असंख्यात गुण अने परस्पर समान छे ९–१०, तेथी असल्यामृषा मनोयोगनो जघन्य योग असंख्यातगुण छे ११, तेथी आहारक शरीरनो जघन्य योग असंख्यातगुण छे, ४ * आहारक नारकनी अपेक्षाए अनाहारक नारक हीन योगवाळो होय छे, कारण के जे नारक ऋजु गतिथी आवीने आहारकपणे उत्पन्न थाय छे, ते निरन्तर आहारक होवाने लीघे पुद्गलोथी उपचित होय छे तेथी ते अधिक योगवाळो होय छे. जे नारक विग्रह गतिवडे अनाहारक पणे उत्पन्न भाय छे ते अनाहारक होवाथी पुद्गलोथी अनुपचित होबाने लीघे हीन योगवाळो होय छे. जेओ समान समयनी विग्रह गतिथी अनाहारकपणे उत्पन्न थाय, अथवा जुगतिथी आवीने आहारकपणे उत्पन्न थाय ते बने एक बीजानी अपेक्षाए समानयोगवाळा होय छे. टीका. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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