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________________ शतक २०.-उद्देशक ५. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. निद्ध ११, सच्चे मउए सच्चे गरुए सचे उसिणे सधे लुक्खे १२, सधे मउए सबै लहुए सवे सीए सवे निद्धे १३, सधे मउए सधे लहुए सचे सीए सधे लुक्खे १४, सवे मउए सचे लहुए सच्चे उसिणे सवे निद्धे १५, सच्चे मउए सच्चे लहुए सवे उसिणे सचे लुक्खे १६ । एए सोलस भंगा। जद पंचफासे सखे कक्खडे सच्चे गरुए सच्चे सीए देसे निद्धे देसे लुक्खे १, सधे कक्खडे सधे गए सवे सीए देसे निद्ध देसा लुक्खा २, सचे कक्खडे सधे गरुए सधे सीए देसा निद्धा देसे लुफ्खे ३,सवे कक्खडे सधे गरुए सधे सीए देसा निद्धा देसा लुक्खा ४, सधे कक्खडे सधे गरुए सचे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्ने ४, सवे कक्खडे सधे लहुए सचे सीप देसे निद्ध देसे लुक्ने ४, सो कक्खडे सधे लहुए संचे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे ४, एवं एए कक्खडेणं सोलस भंगा । सवे मउए सवे गरुए सवे सीए देसे निद्धे देसे लुक्ने ४, एवं मउएण वि सोलस भंगा, एवं बत्तीसं भंगा। सवे कक्खडे सचे गरुए सच्चे निद्धे देसे सीए देसे उसिणे ४, सव्वे कक्खडे सच्चे गरुए सवे लुक्खे देसे सीए देसे उसिणे ४, पए बत्तीसं भंगा । सच्चे कक्खडे सधे सीए सच्चे निद्धे देसे गरुए देसे लहुए, एत्थ वि बत्तीसं भंगा, सवे गरुए सच्चे सीए सवे निद्धे देसे फक्खडे देसे मउए, एत्य वि बत्तीसं भंगा, एवं सच्चे ते पंचफासे अट्ठावीसं भंगसयं भवति ।। ___ जइ छफासे सवे कक्खडे सधे गरुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्ध देसे लुक्खे १, सधे फक्खडे सच्चे गरुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसा लुक्खा २, एवं जाव-सवे कक्खडे सच्चे गरुप देसा सीया देसा उसिणा देसा निद्धा देसा लुक्खा १६, एए सोलस भंगा। सच्चे कक्खडे सच्चे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे, पत्थ वि सोलस भंगा। सच्चे मउए सच्चे गरुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे, एस्थ वि । सवे मउए सधे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे, एत्थ वि सोलस भंगा, एए चउढि भंगा। सधे कक्खडे सच्चे सीए देसे गरुप देसे लहुए देसे निद्धे देसे लुक्खे, एवं जाव-सवे मउए सधे उसिणे देसा गरुया देसा लहुया देसा णिद्धा देसा लुक्खा, सर्व मृदु, सर्व गुरु, सर्व शीत अने सर्व रुक्ष होय १०, कदाच सर्व मृदु, सर्व गुरु, सर्व उष्ण अने सर्व स्निग्ध होय ११, कदाच सर्व मृदु, सर्व गुरु, सर्व उष्ण अने सर्व रुक्ष होय १२, कदाच सर्व मृदु, सर्व लघु, सर्व शीत अने सर्व स्निग्ध होय १३, कदाच सर्व मृदु, सर्व लघु, सर्व शीत अने सर्व रुक्ष होय १४, कदाच सर्व मृदु, सर्व लघु, सर्व उष्ण अने सर्व स्निग्ध होय १५, कदाच सर्व मृदु, सर्व लघु, सर्व उष्ण अने सर्व रुक्ष होय १६. ए सोळ भांगाओ जाणवा हवे जो ते पांचस्पर्शवाळो होय तो (१) सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व शीत, एक देश स्निग्ध अने एक देश रुक्ष होय १, पांच स्पर्शना भगो. अथवा सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व शीत, एक देश स्निग्ध अने अनेक देशो रुक्ष होय २, अथवा सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व शीत, अनेक देशो स्निग्ध अने एक देश रुक्ष होय ३, अथवा सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व शीत, अनेक देशो स्निग्ध अने अनेक देशो रुक्ष होय ४, अथवा (२) कदाच सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व उष्ण, एक देश स्निग्ध अने एक देश रुक्ष होय ४, [अर्हि उपर प्रमाणे चार भांगा जाणवा.] (३) सर्व कर्कश, सर्व लघु, सर्व शीत, एक देश स्निग्ध अने एक देश रुक्ष होय ४, (४) कदाच सर्व कर्कश, सर्व लघु, सर्व उष्ण, एक देश स्निग्ध अने एक देश रुक्ष होय ४. ए प्रमाणे कर्कशनी साथे सोळ भांगा थया. अथवा सर्व मृदु, सर्व गुरु, सर्व शीत, एक देश स्निग्ध अने एक देश रुक्ष होय १६. अहिं मृदुनी साथे पण कर्कशनी पेठे सोळ भांगा करवा. ए रीते बधा मळीने बन्नीश भांगा थाय छे. अथवा सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व स्निग्ध एक देश शीत अने एक देश उष्ण १६, अथवा सर्व कर्कश, सर्व गुरु, सर्व रुक्ष, एक देश शीत अने एक देश उष्ण १६, ए बधा मळीने बत्रीश भांगा जाणवा. कदाच सर्व कर्कश, सर्व शीत, सर्व स्निग्ध, एक देश गुरु अने एक देश लघु. अहिं पण बत्रीश भांगा करवा. अथवा कदाच सर्व गुरु, सर्व शीत, सर्व स्निग्ध, एक देश कर्कश अने एक देश मृदु ३२. अहिं पण बत्रीश भांगा करवा. ए प्रमाणे बंधा मळीने पांच स्पर्शना एकसोने अठ्यावीश भांगा थाय छे. हवे जो ते छ स्पर्शवाळो होय तो (१) सर्व कर्कश, सर्व गुरु, एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध अने एक देश रुक्ष होय १, कदाच सर्व कर्कश, सर्व गुरु, एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध अने अनेक देशो रुक्ष होय २, ए प्रमाणे यावत्-सर्व कर्कश, सर्व गुरु, अनेक देशो शीत, अनेक देशो उष्ण, अनेक देशो स्निग्ध अने अनेक देशो रुक्ष होय १६. ए प्रमाणे सोळ भांगा करवा. (२) कदाच सर्व कर्कश, सर्व लघु, एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध अने एक देश रुक्ष होय १६. अहिं पण सोळ भांगा कहेवा. (३) कदाच सर्व मृदु, सर्व गुरु, एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध अने एक देश रुक्ष होय १६. अहिं पण सोळ भांगा कहेवा. (४) कदाच सर्व मृद्, सर्व लघु, एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध अने एक देश रुक्ष होय १६. अहिं पण सोळ भांगा कहेवा. ए बधा मळीने चोसठ भांगा थाय छे. अथवा कदाच सर्व कर्कश, सर्व शीत, एक देश गुरु, एक देश लघु, एक देश स्निग्ध अने एक देश रुक्ष होय. ए प्रमाणे यावत्-सर्य मृदु, 'सर्व उष्ण, अनेक देशो गुरु, अनेक देशो लघु, अनेक देशो स्निग्ध अने अनेक देशो रुक्ष होय. अहिं चौसठ भांगा जाणवा. कदाच सर्व कर्कश, सर्व स्निग्ध, एक देश गुरु, एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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