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________________ ८४ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक १९.-उद्देशक ३. योगाहणा विसेसाहिया ४०, तस्स चेव पज्जत्तगस्स उकोसिया ओगाहणा विसेसाहिया ४१, पत्तेयसरीरवादरवणस्सइकाइयस्स पजसगस्स जहनिया ओगाहणा असंखेजगुणा ४२, तस्स चेव अपजत्तगस्स उक्कोसिया ओगाहणा असंखेजगुणा ४३, सल्स चेय पजत्तगस्स उक्कोसिया ओगाहणा असंखेजगुणा ४४। २१.०] एयस्स णं भंते ! पुढविकाइयस्स आउकाइयस्स तेउकाइयस्स बाउकाइयस्स बणस्सइकाइयस्स कयरे जाये सधमुहुमे, कयरे काए सधसुहुमतराए ? [उ०] गोयमा ! वणस्सइकाए सवसुहुमे, वणस्सहकाए सधसुहुमतराप १ । २२. [४०] एयस्स णं भंते ! पुढविकाइयस्स आउकाइयस्स तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स कयरे काये सधमुहुमे, कयरे जाये सबसुषुमतराए ? [३०] गोयमा ! बाउकाए सधसुहुमे, घाउकाए सधसुहुमतराए २ । २३. [३०] एयस्स णं भंते ! पुढविवाइयस्स आउकाइयस्स तेउकाइयस्स कयरे काये सधसुहुमे, कयरे काए सधसुहुमतराप[उ०] गोयमा! तेउकाए सच्चसुहुमे, तेउकाए सबसुहुमतराए ३ । २४. [०] एयस्स णं भंते ! पुढविक्काइयस्स आइकाइयस्स कयरे काए सवसुडुमे, कयरे कार सधसुहुमतराए ? [उ०] प्यया! बाउकाए सवसुहुमे, आउकाए सबसुहुमतराए । २५. [३०] एयस्स णं भंते! पुढविक्काइयस्स आउकाइयस्स तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स वणस्सइकाइयस्स कयरे काये सम्पादरे, पयरे काये सधयादरतराए ? [उ०] गोयमा! वणस्सइकाये सवबादरे, वणस्सइकाये सधवादरतराए । २६. [३०] एयस्स गं भंते ! पुढविकाइयस्स आउकाइयस्स तेउकाइयस्स पाउकाइयस्स कयरे कार सधबादरे, कवरे पर सपपादरसराए ? [उ०] गोयमा ! पुढविकाए सधबादरे, पुदविकाए सधयादरतराए २ । २७. [प्र०] एयस्स णं भंते! आउकाइयस्स तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स कयरे कार सवबादरे, कयरे काए सधवादरपराप[उ०] गोयमा ! आउकाए सच्चयादरे, आउक्काए सवबादरतराए ३।। २८. [प्र०] एयस्स णं भंते ! तेउकाइयस्स पाउकाइयस्स कयरे कार सधबादरे, कयरे काए सवबादरतराए ? [3०] गोवमा! तेउकाए सबारे, तेउकाए सवबादरतराए । मिवावयादिनी परत्तर सूक्ष्मता. वेधी पर्याप्त बादर निगोदनी उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक छे ४१, तेथी प्रत्येक शरीरवाळा पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिकनी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुण छे ४२, तेथी प्रत्येक शरीरवाळा अपर्याप्त बादर वनस्पतिकायिकनी उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुण छे ४३, अने तेथी प्रत्येक शरीरवाळा बादर वनस्पतिकायिकनी उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुण छे ४४. २१. प्र०हे भगवन् ! पृथिवीकायिक, अप्कायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक अने वनस्पतिकायिक ए बधामा कइ काय सौथी सूक्ष्म अने सूक्ष्मतर छे! [उ०] हे गौतम ! वनस्पतिकायिक सौधी सूक्ष्म अने सूक्ष्मतर छे. २२. हे भगवन् ! ए पृथिवीकाय, अप्काय, अग्निकाय अने वायुकायमां कई काय सर्वथी सूक्ष्म अने सूक्ष्मतर छे ! [उ०] हे गौतम! वायुकाय सौथी सूक्ष्म अने सूक्ष्मतर छे. २३. हे भगवन् । ए पृथिवीकाय, अप्काय अने तेजस्कायमां कई काय सर्व सूक्ष्म अने सर्व सूक्ष्मतर छे ? [उ०] हे गौतम ! अग्निकाय साधी सूक्ष्म अने सूक्ष्मतर छे. २१. [प्र०] हे भगवन् ! ए पृथिवीकाय अने अप्कायमां कई काय सर्य सक्ष्म अने सर्व सूक्ष्मतर छे ! [उ०] हे गौतम ! अप्काय सौपी सूक्ष्म अने सूक्ष्मतर छे. २५. [प्र०] हे भगवन् ! ए पृथिवीकाय, अप्काय, अनिकाय, वायुकाय अने वनस्पति कायमां कई काय सौथी बादर अने बादरतर है! [उ०] हे गौतम! वनस्पतिकाय सौथी बादर अने बादरतर छे. २६. [प्र०] हे भगवन् ! ए पृथिवीकाय, अप्काय, अग्निकाय अने वायुकायमां कई काय बादर अने बादरतर छ। [उ०] हे गौतम! पृथिवीकाय सौथी बादर अने बादरतर छे. २७. [प्र०] हे भगवन् ! ए अप्काय, अग्निकाय अने वायुकायमा कई काय सौथी बादर अने बादरतर छे! [उ०] हे गौतम ! पफाय सौथी बादर अने बादरतर छे. २८. [प्र०] हे भगवन् ! ए अमिकाय अने वायुकायमां कई काय सर्वथी बादर अने सर्वथी बादरतर छ ! [उ०] हे गौतम! बनिकाय सौथी बादर अने बादरतर छे. * वनस्पतिकाय सूक्ष्म वनस्पतिकायनी अपेक्षाए सर्व करता अधिक सूक्ष्म छ भने प्रत्येक वनस्पतिकायनी अपेक्षाए सर्व करता अधिक बादर छे. एपिपीकावादिनु Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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