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________________ शतक ८.-उद्देशक २. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ५. प्रि०] जइ कम्मआसीविसे किं नेरइयकम्मआसीविसे, तिरिक्खजोणियकम्मआसीविसे, मणुस्सकम्मआसीविसे, वकासासीविसे? उ० गोयमा! नो नेरइयकम्मासीविसे, तिरिक्खजोणियकम्मासीविसे वि, मणुस्सकम्मासीविसे वि. देवकम्मासीविसे वि। ६.प्रा जइ तिरिक्खजोणियकम्मासीविसे किं एगिदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे, जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियकम्पासीविसे ? [उ०] गोयमा ! नो एगिदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे, जाव नो चरिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे, पंचिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे। ७. [प्र०] जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे किं समुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे, गम्भवक्रतियपंचिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे ? [उ०] एवं जहा वेउवियसरीरस्स भेदो, जाव पजत्तसंखेजवासाउयगम्भवतियपंचिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे, नो अपज्जत्तासंखेजवासाउय- जाव कम्मासीविसे। ८. [प्र०] जदि मणुस्सकम्मासीविसे किं समुच्छिममणुस्सकम्मासीविसे, गम्भवक्कंतियमणुस्सकम्मासीविसे ? [उ०] गोयमा ! णो समुच्छिममणुस्सकम्मासीविसे, गम्भवकंतियमणुस्सकम्मासीविसे; एवं जहा वेउधियसरीरं, जाव पज्जत्तसंस्खेजवासाउयकम्मभूमंगगम्भवकंतियमणुस्सकम्मासीविसे, नो अपजत्ता- जाव कम्मासीविसे। ९. [प्र०] जदि देवकम्मासीविसे किं भवणवासिदेवकम्मासीविसे, जाव वेमाणियदेवकम्मासीविसे ? [उ०] गोयमा ! भवणवासिदेवकम्मासीविसे, वौणमंतर-जोतिसिय-वेमाणियदेवकम्मासीविसे वि। १०. [प्र०] जदि भवणवासिदेवकम्मासीविसे किं असुरकुमारभवणवासिदेवकम्मासीविसे, जाव थणियकुमार-जाव फम्मासीविसे ? [उ०] गोयमा !.असुरकुमारभवणवासिदेवकम्मासीविसे वि, जाव थणियकुमार-जाव कम्मासीविसे वि। ५. प्र०ा हे भगवन् ! जो कर्माशीविष छे तो शुं नैरयिक कर्माशीविष छे, तिर्यंचयोनिक कर्माशीविष छे, मनुष्य कर्माशीविष छे के देव कर्माशीविष छ ? [उ.] हे गौतम! नैरयिक कर्माशीविष नथी, पण तिर्यंचयोनिक कर्माशीविष छे, मनुष्य कर्माशीविष छे अने देवकर्माशीविष छे. ६. [प्र०] हे भगवन् ! जो तिर्यंचयोनिक कर्माशीविष छे तो शुं एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कर्माशीविष छे के यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक कर्माशीविष छे ! [उ०] हे गौतम! एकेन्द्रिय तियंचयोनिकथी आरंभी यावत् चतुरिन्द्रिय तिर्यंचयोनिकपर्यन्त कर्माशीविष नथी, पण पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कर्माशीविष छे. ७. प्र०] हे भगवन् ! जो पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कर्माशीविष छे तो शुं संमूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कर्माशीविष छे के गर्मजपंचेन्द्रियतियगर्भजपंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कर्माशीविष छे ? [उ०] हे गौतम! जेम *वैक्रियशरीरसंबंधे जीव भेद कह्यो छे तेम यावत् पर्याप्त संख्यात चाशीषिक. वर्षना आयुष्यवाळा गर्भज कर्मभूमिमां उत्पन्न थयेला पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कर्माशीविष होय छे, पण अपर्याप्त असंख्यातवर्षना आयुष्यवाळा यावत् कर्माशीविष नथी. ८. [प्र०] हे भगवन् ! जो मनुष्य कर्माशीविष छे, तो शुं संमूर्छिम मनुष्य कर्माशीविष छे के गर्भज मनुष्य कर्माशीविष छे ! [उ०] गर्भज मनुष्य हे गौतम ! संमूर्छिम मनुष्य कर्माशीविष नथी, पण गर्भज मनुष्य कर्माशीविष छे. जेम विक्रियशरीरसंबन्धे जीवभेद कह्यो छे ते प्रमाणे यावत् कर्माशीविष. पर्याप्त संख्यातवर्षना आयुष्यवाळा कर्मभूमिमां उत्पन्न थयेला गर्भज मनुष्य कर्माशीविष छे पण अपर्याप्त असंख्यात वर्षना आयुष्यवाळा कर्माशीविष नथी. ९. [प्र०] हे भगवन् ! जो देव कर्माशीविष छे तो शुं भवनवासी देव कर्माशीविष छे के यावत् वैमानिकदेव कर्माशीविष छे! [उ०] हे गौतम ! भवनवासी देव कर्माशीविष छे, वानव्यंतर देव, ज्योतिष्क देव, अने वैमानिकदेव पण कर्माशीविष छे. १०. [प्र०] हे भगवन् ! जो भवनवासी देव कर्माशीविष छे तो शुं असुरकुमार भवनवासी देव कर्माशीविष छे के यावत् स्तनित- कुमार भवनवासी देव कर्माशीविष छे ? [उ०] हे गौतम ! असुरकुमार भवनवासी देव पण कर्माशीविष छे, यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देव पण यावत् कर्माशीविष छे. भवनवासी क्र. माशीविष. 1-णिय जाव क-क। २-भूमागम्भ-क। ३-मंतरदेवजो-क। ७.*प्रज्ञा० २१ शरीरपद. प. ४१५-१. पं. २. ८. प्रज्ञा०२१ शरीरपद. प. ४१५-१. पं.१२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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