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________________ सत्तमो उद्देसओ. १. [प्र०] संवुडस्स णं भंते ! अणगारस्स आउत्तं गच्छमाणस्स, जाव आउत्तं तुयट्टमाणस्स, आउत्तं वत्थं पडिग्गहं कंवलं पायपुंछणं गेण्हमाणस्स वा, निक्खिवमाणस्स वा तस्स णं भंते ! किं इरियावहिया किरिया कजइ, संपराइया किरिया कजा [उ.] गोयमा! संवुडस्स णं अणगारस्स जाव तस्स णं इरियावहिया किरिया कज्जइ, णो संपराइया। प्र० से केणटेणं भंते ! एवं वुश्चह-संवुडस्स णं जाव नो संपराइआ किरिया कजइ ? [उ०] गोयमा! जस्स णं कोह-माण-माया-लोभा वोच्छिन्ना भवंति तस्स णं इरियावहिया किरिया कजइ, तहेव जाव उस्सुत्तं रीयमाणस्स संपराइया किरिया कज्जा, सेणं अहासुत्तमेव रीयइ, से तेण?ण गोयमा! जाव नो संपराइआ किरिया कजद। २. [प्र०] रुवी भंते ! कामा, अरूवी कामा ? [उ०] गोयमा ! रूवी कामा, नो अरूवी कामा। ३. [प्र०] सचित्ता भंते ! कामा, अचित्ता कामा ? [उ०] गोयमा ! सचित्ता वि कामा, अचित्ता वि कामा । ४. [प्र०] जीवा भंते ! कामा, अजीवा भंते ! कामा ? [उ०] गोयमा ! जीवा वि कामा, अजीवा वि कामा। ५. [प्र०] जीवाणं भंते ! कामा, अजीवाणं कामा ? [उ०] गोयमा ! जीवाणं कामा, नो अजीवाणं कामा। ६. [प्र.] कतिविहा णं भंते ! कामा पन्नता ? [उ०] गोयमा ! दुविहा कामा पन्नत्ता, तं जहा सहा य, रूवा यं । ७. [प्र०] रूवी भंते ! भोगा, अरूवी भोगा ? [उ०] गोयमा ! रुवी भोगा, नो अरूवी भोगा । सप्तम उद्देशक. १. [प्र०] हे भगवन् ! उपयोग( सावधानता )पूर्वक गमन करता, यावत् उपयोगपूर्वक सूता-आळोटता के उपयोगपूर्वक वस्त्र, ___ संवृत अनगारने पात्र, कंबल अने पादपोंछनक( रजोहरण )ने ग्रहण करता अने मूकता संवृत-संवरयुक्त साधुने शुं ऐपिथिकी क्रिया लागे के सांपरायिकी क्रिया क्रिया लागे ? [उ.] हे गौतम ! संवरयुक्त यावत् ते अनगारने ऐपिथिकी क्रिया लागे, सांपरायिकी क्रिया न लागे. [प्र०] हे भगवन् ! योपथिको किया एम शा हेतुथी कहो छो के संवरयुक्त साधुने यावत् सांपरायिकी क्रिया न लागे ! [उ०] हे गौतम ! जेना क्रोध, मान, माया अने लोभ लागवान कारण. नष्ट थया होय तेने ऐर्यापथिकी क्रिया लागे, तेमज यावत् सूत्रविरुद्ध चालनारने सांपरायिकी क्रिया लागे; ते संवरयुक्त अनगार सूत्र प्रमाणे वर्ते छे, ते हेतुथी हे गौतम! तेने यावत् सांपरायिकी क्रिया न लागे. काम अने भोग. २. [प्र०] हे भगवन् ! कामो रूपी छे के अरूपी छे ? [उ०] हे गौतम ! कामो रूपी छे, पण हे आयुष्मान् श्रमण ! कामो काम रूपी के अरूपी? अरूपी नथी. ३. [प्र०] हे भगवन् ! कामो सचित्त छे के अचित्त छे ? [उ०] हे गौतम ! कामो सचित्त पण छे अने अचित्त पण छे. सचित्त के अचित्त? ४. [प्र०] हे भगवन् ! कामो जीव छे के अजीव छ? [उ०] हे गौतम ! कामो जीव पण छे अने अजीव पण छे. जीव के अजीक ? ५. [प्र०] हे भगवन् ! कामो जीवोने होय छे के अजीवोने होय छे? [उ.1 हे गौतम ! कामो जीवोने होय छे, पण अजीवोने जीवोने के अजीवोने? कामो होता नथी. ६. [प्र०] हे भगवन् ! कामो केटला प्रकारे कह्या छ ? [उ० ] हे गौतम ! कामो बे प्रकारे कह्या छे, जेमके शब्दो अने रूपो. ७. [प्र०] हे भगवन् ! भोगो रूपीछे के अरूपी छे ? [उ.] हे गौतम! भोगो रूपी छे, पण अरूपी नथी. भोगो रूपी के अरूपी कामा, समणाउसो ! नो घ । २ रुविं भं क-ख । ३ अरुवि भक-ख । Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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