SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक १४.-उद्देशक ३. ५. [प्र०] अस्थि णं भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं सकारे इवा, जाव-पडिसंसाहणया वा? [उ०] हंता अत्थि, नो चेव णं आसणाभिग्गहे इ वा, आसणाणुप्पयाणे इ वा । मणुस्साणं जाव-वेमाणियाणं जहा असुरकुमाराणं । ६. [प्र०] अप्पड्डीए णं मंते! देवे महडियरस देवस्स मज्झमझेणं वीइवरजा ? [उ.] नो तिणट्टे समटे। ७. [प्र०] महावीए णं भंते! देवे समड्डियस्स देवस्स मज्झमझेणं वीइवरजा' [उ०] णो इणटे समढे, पमत्तं पुण बीयपजा। ८. [प्र०] से णं भंते ! किं सत्येणं अक्कमित्ता पभू, अणक्कमित्ता पभू? [उ०] गोयमा। अक्वमित्ता पभू, नो अणकमित्ता पभू । ९. [प्र०] से णं भंते ! किं पुष्विं सत्थेणं अक्कमित्ता पच्छा वीयीवएजा, पुष्विं वीईवएजा पच्छा सत्थेणं अकमेज्जा ? [उ०] एवं एएण अभिलावेणं जहा दसमसए आइवीउद्देसए तहेव निरवसेसं चत्तारि दंडगा भाणियचा जाव-'महड्डिया वेमाणिणी अप्पड्डियाए वेमाणिणीए'। १०. [प्र०] रयणप्पभापुढविनेरइया णं मंते ! केरिसयं पोग्गलपरिणामं पचणुभवमाणा विहरंति? [उ०] गोयमा! अणिटुं, जाव-अमणाम, एवं जाव-अहेसत्तमापुढविनेरइया, एवं वेदणापरिणाम, एवं जहा जीवाभिगमे बितिए नेरायउद्देसए जाव-[प्र०] अहेसत्तमापुढविनेरइया णं भंते ! केरिसयं परिग्गहसनापरिणामं पञ्चणुब्भवमाणा विहरंति ? [उ०] गोयमा! मणिटुं, जाप-अमणाम । 'सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति । चोदसमसए तईओ उद्देसो समत्तो।। ५. [प्र०] हे भगवन् ! पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकोमा सत्कार, यावत्-जनारनी पाछळ वळावा जवें-इत्यादि विनय होय छे ? [उ०] हे चोमा सत्कारादि । - गौतम हा, होय छे. परन्तु आसनामिग्रह-आसन आपQ, आसनानुप्रदान-आसनने एक स्थानथी बीजे स्थानके लावq-इत्यादि विनय विनय होय । अपकशिवालो होतो नथी. मनुष्यो अने यावद्-वैमानिकोने जेम असुरकुमारने कडं तेम कहे. देव महाकदिवाळा देवनी बच्चे थईने ६. [प्र०] हे भगवन् ! अल्पऋद्धिवाळो देव महाऋद्धिवाळा देवनी बच्चे थइने जाय ! [उ०] हे गौतम! ए अर्थ समर्थ-यथार्थ नथी. बाय। समानकदिवाळो ७. [प्र०] हे भगवन् । समानऋद्धिवाळो देव समानऋद्धिवाळा देवनी बच्चे थईने जाय ! [उ०] हे गौतम! ए अर्थ यथार्थ नथी. देव समानाशि- पण जो ते [समानऋद्धिवाळो देव] प्रमत्त होय तो तेनी वच्चे थईने जाय. . पाळा देवनी बचे थईने जाय! ८. [प्र०] हे भगवन् ! (बच्चे थईने जनार ते देव ) शुं शस्त्रथी प्रहार करीने जवा समर्थ थाय के प्रहार कर्या शिवाय जवा समर्थ बच्चे थईने जनारदेव शाररीने थाय ! [उ०] हे गौतम! शस्त्रप्रहार करीने जवा समर्थ थाय, पण प्रहार कर्या शिवाय जवा समर्थ न थाय. जायके कर्या शिवाय जाय। "" . ९. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते देव प्रथम शत्रप्रहार करे अने पछी जाय के पहेला जाय अने पछी शस्त्रप्रहार करे ? [उ.] इत्यादि प्रथम शसपहार आ प्रकारना अमिलापथी *दशम शतकना आइडिअनामे (आत्मर्द्धिक) उद्देशकमां कह्या प्रमाणे समग्रपणे चार दंडको (त्रिण आलापककर्या पछी जाय के गया सहित ) कहेवा, यावद् 'मोटी ऋद्धिवाळी वैमानिक देवी अल्पऋद्धिवाळी वैमानिक देवीनी वच्चे थईने जाय.' हार करे। १०. प्र०] हे भगवन् ! रत्नप्रभापृथिवीना नारको केवा प्रकारना पुद्गलपरिणामने अनुभवता विहरे छे ? [उ०] हे गौतम ! तेओ नारको फेवा प्रकारना पुद्गलपरि- अनिष्ट, यावत्-मनने नहि गमता पुद्गलपरिणामने अनुभवता विहरे छे. ए प्रमाणे यावत्-सातमी नरकपृथिवीना नारको सुधी जाणवं. ए णामने अनुभवे ले। रीते यावत्-वेदनापरिणामने पण अनुभवे छे-इत्यादि जेम जीवाभिगम सूत्रना बीजा निरयिक उद्देशकमां कडं छे ते प्रमाणे अहिं कहे. यावत्-प्र०] हे भगवन् ! सातमी नरकपृथिवीना नैरयिको केवा प्रकारना परिग्रहसंज्ञापरिणामने अनुभवे छे ? [उ०] हे गौतम ! तेओ अनिष्ट, यावत्-मनने नहि गमता परिग्रहसंज्ञापरिणामनो अनुभव करता विहरे छे. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे'एम कही [भगवान् गौतम ] यावद् विहरे छे. चतुर्दशशते तृतीय उद्देशक समाप्त. * भग० ख०३ श०१० उ०३ पृ० १९३. अल्पर्द्धिक अने महर्चिकनो प्रथम आलापक, समर्द्धिक भने समर्चिकनो यीजो आलापक, तथा महर्द्धिक अने अल्पर्द्धिकनो त्रीजो बालापक. तेमा अल्पर्दिक अने महर्द्धिकनो आलापक तथा समर्द्धिकालापक-ए बे भालापक साक्षात् कह्या छे, केवल समर्दिकालापकने अन्ते बाकीना सूत्रनो अंश आ प्रमाणे जाणवो-"प्रथम शस्त्रथी हणीने जाय, पण पूर्वे जईने पछी न हणे. हे भगवन् ! महर्द्धिक देव अल्पर्धिक देवना मध्यमां थईने जाय? हा जाय. ते महर्दिक देव शनथी हणीने जवा समर्थ होय के हण्या शिवाय जवा समर्थ होय? हे गीतमहणीने पण जवा समर्थ होय अने हण्या शिवाय पण जवा समर्थ होय. हे भगवन् ! पूर्वे शस्त्रवडे हणीने पछी जाय के पूर्व जईने पछी हणे ! हे गौतम ! पूर्वे शस्त्रवडे हणीने पछी जाय, अथवा पूर्व जईने पछी शनवडे हणे." ' ११ देव अने देवनो प्रथमदंडक, २ देव अने देवी संबन्धे बीजो दंडक, देवी भने देव संबन्धे त्रीजो दंडक, अने ४ देवी भने देवी संबंधे चोथो दंडक-ए रीते चार दंडक जाणवा. १. नैरयिकसंबंधे हकीकत जीवाभिगमसूत्र प्रति. ३ उ० १-२-३१० ८९-१२९ सुधीमा छ, परन्तु उपरना सूत्रने लगतो थोडो पाठ मात्र प्रति. नेरयिक उ•३५.१२९ मा छे. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org.
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy