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________________ सत्तमो उद्देसओ। १. [प्र०] तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव-एवं वयासी-केमहालए णं भंते ! लोए पन्नत्ते ? [३०] गोयमा! महतिमहालए लोए पन्नत्ते, पुरथिमेणं असंखेजाओ जोयणकोडाकोडीओ, दाहिणणं असंखिज्जाओ एवं चेव, एवं पञ्चत्थिमण वि, एवं उत्तरेण वि, एवं उहं पि, अहे असंखेजाओ जोयणकोडाकोडीओ आयाम-विक्खंभेणं। २. [H०] पयंसि णं मंते ! एमहालगंसि लोगंसि अत्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि परसे, जत्थ णं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि? [उ०] गोयमा! नो इणटे समढे । [.] से केणटेणं भंते । एवं वुच्चइ-'एयंसि णं एमहालगंसि लोगंसि नत्थि केइ परमाणुपोग्गलमत्ते वि पएसे, जत्थ णं अयं जीवे ण जाए वा, न मए वा वि' १ [उ०] गोयमा! सेजहानामए-केह पुरिसे अयासयस्स एगं महं अयावयं करेजा, सेणं तत्थ जहन्नेणं एक वा दो वा तिन्नि वा, उकोसेणं अयासहस्सं पक्खिवेजा, ताओ णं तत्थ पउरगोयराओ पउरपाणियाओ जहन्नेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेणं छम्मासे परिवसेजा, अत्थि गं गोयमा! तस्स अयावयस्स केई परमाणुपोग्गलमत्ते वि पएसे, जे गं तासिं अयाणं उच्चारेण वा पासवणेण वा खेलेण वा सिंघाणपण वा वंतेण वा पित्तेण वा पूरण वा सुक्केण वा सोणिएण वा चम्मेहिं वा रोमेहि वा सिंगेहिं वा खुरेहिं पा नहोहिं वा अणकंतपुष्वे भवइ ? णो तिणट्टे समझे, होजा विणं गोयमा! तस्स अयावयस्स केई परमाणुपोग्गलमत्ते वि पएसे, जे गं तासिं अयाणं उच्चारेण वा जाव-णहहिं वा अणकंतपुधे, णो नेव णं एयंसि एमहालगंसि लोगसि लोगस्स य सासयं भा, संसारस्स य अणादिभावं, जीवस्स य णिचभावं, कम्मबहुत्तं, जम्मण-मरणबाहुलं च पडुश्च नत्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि परसे, जत्थ णं अयं जीवे न जाए वा न मए वा वि, से तेणटेणं तं चेव जाव-न मए वा वि। सप्तम उद्देशक. १. [प्र०] ते काले-ते समये यावद्-[भगवान् गौतम ] आ प्रमाणे बोल्या के-हे भगवन् ! लोक केटलो मोटो कह्यो छे ! [उ०] हे गौतम | लोक अत्यन्त मोटो कह्यो छे; ते पूर्व दिशाए असंख्य कोटाकोटी योजन छे, दक्षिण दिशाए ए प्रमाणे असंख्याता कोटाकोटी योजन छे, ए प्रमाणे पश्चिम दिशाए अने उत्तर दिशाए छे. तथा एज प्रमाणे ऊर्ध्व-उपर अने नीचे पण असंख्य कोटाकोटि योजन आयाम-लंबाइ अने विष्कंभ-विस्तारथी छे. २. [प्र०] हे भगवन् ! आ एवडा मोटा लोकमां एवो कोइ परमाणुपुद्गलना जेटलो पण प्रदेश छे के, ज्या आ जीव उत्पन्न थयो न होय, अने मरण पाम्यो पण न होय ! [उ०] हे गौतम! ए अर्थ यथार्थ नथी. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के-'आ एवडा मोटा लोकमां एवो कोइ परमाणुपुद्गलमात्र पण प्रदेश नथी, के ज्यां आ जीव उत्पन्न थयो न होय अने मर्यो न होय ! [उ.] हे गौतम! जेम कोइ एक पुरुष सो बकरीने माटे एक मोटो अजाव्रज-बकरीनो वाडो-करे, तथा तेमा ओछामा ओछी एक, बे के त्रण अने वधारेमां वधारे एक हजार बकरीओ नाखे, अने ते वाडामा घणुं पाणी अने घणुं गोचर-चरवानुं स्थळ-होवाधी ते बकरीओ जघन्यथी एक दिवस, बे दिवस के त्रण दिवस अने उत्कृष्टथी छ मास सुधी रहे, तो हे गौतम! ते वाडानो एवो कोइ परमाणुपुद्गल मात्र प्रदेश होय के जे ते बकरीओनी लिंडिओथी, मूत्रथी, श्लेष्मथी, नाकना मळथी, वमनथी, पित्तथी, शुक्रथी, लोहिथी, चामडाथी, रोमथी, शिंगडाथी, खरीथी अने नखथी पूर्व स्पर्श न करायेलो होय ! [हे भगवन् !] ए अर्थ यथार्थ नथी. हे गौतम! कदाच कोइ एक परमाणुपुद्गल मात्र प्रदेश होय के जे ते बकरीओनी लीडोओथी, यावत् नखोथी पूर्व स्पर्श न करायेलो होय. तो पण आ एवडा मोटा लोकमां लोकना शाश्वत भावने लइने, संसारना अनादिपणाने लीधे, जीवना नित्य भावने आश्रयी, अने कर्मनी बहुलताने अने जन्म तथा मरणनी बहुलताने अपेक्षी एवो कोई परमाणुपुद्गल मात्र प्रदेश नथी के ज्यां आ जीव न जन्म्यो होय के न मर्यो होय. माटे हे गौतम! ते हेतुथी पूर्वोक्त यावत्-'ते मर्यो न होय. लोकर्नु महत्व Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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