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________________ २५८ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक १२.-उद्देशक २. भदत्तो जाव-भविस्सइ । तए णं सा मियावती देवी जयंतीए समणोवासियाए जहा देवाणंदा जाव-पडिसुणेति । तए णं सा मियावती देवी कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, को०२-त्ता एवं वयासी-'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! लहुकरण-जुत्तजोइय० जावधम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेह' जाव-उवट्ठवेंति, जाव-पच्चप्पिणंति । तए णं सा मियावती देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धिं ण्हाया कयबलिकम्मा जाव-सरीरा बहूहिं खुजाहिं जाव-अंतेउराओ निग्गच्छति, अं० २-च्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवाणसाला जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, ते २-च्छित्ता०२ जाव-दुरूढा । तए णं सा मियावती देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धिं धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा समाणी नियगपरियाल. जहा उसभदत्तो जाव-धम्मियाओ जाणप्पवराओ पञ्चोरुहइ । तए णं सा मियावती देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धिं यहूहिं खुजाहिं जहा देवाणंदा जाव-वंदर नमंसइ, उदायणं रायं पुरओ कट्ठ ठितिया चेव जाव पजुवासइ । तए णं समणे भगवं महावीरे उदायणस्स रनो मियावईए देवीए जयंतीए समणोवासियाए तीसे य महतिमहा० जाव धम्म परिकहेइ, जाव परिसा पडिगया, उदायणे पडिगए, मियावती देवी वि पडिगया । ३. तए णं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठ-तुट्ठा समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता एवं वयासी-[प्र०] कन्नं भंते ! जीवा गरुयत्तं हवमागच्छन्ति ? [उ०] जयंती! पाणाइवाएणं, जाव-मिच्छादसणसल्लेणं, एवं खलु जीवा गरुयत्तं हवमागच्छंति । एवं जहा पढमसए जाव-वीईवयंति । ४. [३०] भवसिद्धियत्तणं भंते ! जीवाणं किं सभावओ परिणामओ ? [उ०] जयंती! समावओ, नो परिणामओ। ५. [प्र०] सवेवि णं भंते ! भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति ? [उ०] हता! जयंती! सच्चेऽवि णं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति। ६. [प्र०] जइ णं भंते ! सखे वि भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति, तम्हा णं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सइ ? [उ०] णो तिणटे समटे। [प्र०] से केणं खाइएणं अटेणं भंते! एवं वुच्चइ-'सच्चे विणं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति, नो पासिकाना वचननो स्वीकार कर्यो, त्यार पछी ते मृगावती देवीए कौटुंबिक पुरुषोने बोलावी आ प्रमाणे कयुं-'हे देवानुप्रियो ! वेगवाळु, जोतरसहित यावत् धार्मिक श्रेष्ठ यान जोडीने जलदी हाजर करो,' यावत्-ते कौटुंबिक पुरुषो यावत् हाजर करे छे, अने तेनी आज्ञा जयंती मृगावती पाछी आपे छे. त्यार बाद ते मृगावती देवी ते जयंती श्रमणोपासिकानी साथे स्नान करी, बलिकर्म-पूजा करी, यावत्-शरीरने शणगारी सहित भगवंतने घणी कुब्ज दासीओ साथे यावत् अंत:पुरथी बहार नीकळे छे, नीकळी ज्या बहारनी उपस्थानशाला छे, अने ज्या धार्मिक श्रेष्ठ वाहन वंदन करवा जाय छे. तैयार उभं छे, त्यां आवी यावत् ते वाहन उपर चढी. त्यार बाद जयंती श्रमणोपासिकानी साथे धार्मिक श्रेष्ठ यान उपर चडेली ते मृगावती देवी पोताना परिवारयुक्त ऋषभदत्त ब्राह्मणनी पेठे यावत्-ते धार्मिक श्रेष्ठ वाहनथी नीचे उतरे छे. पछी जयंती श्रमणोपासिकानी साथे ते मृगावती देवी घणी कुब्ज दासीओना परिवार सहित देिवानंदानी पेठे यावद् वांदी, नमी उदायन राजाने आगळ करी त्यांज रहींजयंतीना प्रश्नो. नेज यावद् पर्युपासना करे छे. त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीरे उदायन राजाने, मृगावती देवीने, जयंती श्रमणोपासिकाने अने ते अत्यन्त मोटी परिषदने यावद् धर्मोपदेश कर्यो, यावत् परिषद् पाछी गइ, उदायन राजा अने मृगावती देवी पण पाछा गया. ३. त्यार बाद ते जयंती श्रमणोपासिका श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी धर्मने सांभळी, अवधारी हृष्ट अने तुष्ट थइ, श्रमण भग वंत महावीरने वांदी, नमी आ प्रमाणे बोली के-प्र०] हे भगवन् ! जीवो शाथी गुरुत्व-भारेपणुं पामे [उ०] हे जयंती | जीवो प्राणाजीवो शाथी भारेपणु पा? तिपातथी-जीवहिंसाथी यावद् मिथ्यादर्शनशल्यथी, ए प्रमाणे खरेखर जीवो भारेकर्मापणुं प्राप्त करे छे. ए प्रमाणे जेम प्रथम शतका कयुं छे तेम जाणवू, यावत् तेओ मोक्षे जाय छे. भव्यपणे स्वाभाविक ४. [प्र०] हे भगवन् ! जीवोनुं भवसिद्धिकपणुं स्वभावथी छे के परिणामथी छे ! [उ०] हे जयंती! भवसिद्धिक जीवो खभावथी छे के परिणाम- छे, पण परिणामथी नथी. सर्व भव्यजीवो ५. [प्र०] हे भगवन् ! सर्वे भवसिद्धिक जीवो सिद्ध शे? [उ०] हे जयंती ! हा, सर्वे भवसिद्धिक जीवो सिद्ध थशे. मोक्ष जो! तो शुं लोक भव्य ६. [प्र०] हे भगवन् ! जो सर्वे भवसिद्धिको सिद्ध थशे तो आ लोक भवसिद्धिक जीवो रहित थशे ! [उ०] ते अर्थ यथार्थ नथी, रहित यशे? अर्थात् बधा भवसिद्धिको सिद्ध थाय तोपण भवसिद्धिक विनानो लोक नहिं थाय. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे तमे शा हेतुथी कहो छो २* भग० सं० ३ श० ९ उ. ३३ पृ. १६४. भिग० ख०३ पृ. १६४. ३१ भग० ख० १ श०१ उ. ९पृ० १९९. ४॥खाभाविक भावने खभाव कहे छे, जेम पुदगलने विषे मूर्तत्व स्वाभाविक भाव छे. रूपान्तरने परिणाम कहे छे, जेम चालत्य, यौवन, पद्धत्व वगेरे परिणामथी धयेला भावो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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