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________________ २०८ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंप्रहे शतक ११.-उद्देशक १. ३.० ते गं भंते ! जीवा कोहिंतो उववजंति? कि नेरपहिंतो उववजंति, तिरि०मण देवहितो उपषजंति ? [उ०] गोयमा! नो नेरतिपहिंतो उववजंति, तिरिक्खजोणिपहिंतो वि उववजंति मणुस्सेहितो० देवहितो वि उववजंति । एवं उववामो भाणिअयो जहा वकंतीए वणस्सइकाइयाणं जाव ईसाणेति । ४. [प्र०] ते णं भंते ! जीवा एगसमए णं केवइआ उववजंति ? [उ०] गोयमा! जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेजा वा असंखेजा वा उववजंति । . ५. [प्र० ते णं भंते ! जीवा समए २ अवहीरमाणा २ केवतिकालेणं अवहीरंतिउ०] गोयमा! ते णं असंखेजा समए २ अवहीरमाणा २ असंखेजाहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिया सिया । ६. [प्र०] तेसि णं भंते ! जीवाणं केमहालिआ सरीरोगाहणा पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजरभाग, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं । ७. [प्र०] ते णं भंते ! जीवा णाणावरणिजस्स कम्मस्स किं बंधगा अबंधगा? [उ०] गोयमा ! नो अबंधगा, बंधए वा, बंधगा वा । एवं जाव अंतराइअस्स। ८. [प्र०] नवरं आउअस्स पुच्छा । [उ०] गोयमा! १ बंधए वा, २ अबंधए वा, ३ बंधगा वा, ४ अबंधगा वा; ५ अहवा बंधएअ अबंधए अ, ६ अहवा बंधए अ अबंधगा य, ७ अहवा बंधगा य अबंधए अ, ८ अहवा बंधगा य अबंधगा य । एते अट्ठ भंगा। ९. [प्र०] ते णं भंते ! जीवा णाणावरणिजस्स कम्मस्स किं वेदगा अवेदगा ? [उ०] गोयमा ! नो अवेदगा, वेदए षा वेदगा वा । एवं जाव अंतराइअस्स । उपपात-जीवो. ३. [प्र०] हे भगवन् ! [ उत्पलमां ] ते जीवो क्याथी आवीने उपजे छे-शुं नैरयिकथी, तिर्यंचथी, मनुष्यथी के देवथी आवीने " उपजे छे ? [उ०] हे गौतम! ते जीवो नैरयिकथी आवीने उपजता नथी, पण तिर्यंचथी, मनुष्यथी के देवथी आवीने उपजे छे. जेम आवीने उप प्रज्ञापनासूत्रनां *व्युत्क्रांतिपदमां कयुं छे ते प्रमाणे वनस्पतिकायिकोमां यावत् ईशान देवलोक सुधीना जीवोनो उपपात कहेवो. परिमाण-एक समय- . ४. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो [ उत्पलमां ] एक समयमां केटला उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! जघन्यथी एक, बे के त्रण मां फेटला उपजा अने उत्कृष्टथी संख्यात के असंख्याता जीवो एक समयमा उत्पन्न थाय. अपहार-प्रतिसमय ५. [प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवो समये समये काढवामां आवे तो केटले काले ते पूरा काढी शकाय! [उ०] हे काढवामां आवे तो गौतम ! जो ते जीवो समये समये असंख्य काढवामां आवे, अने ते असंख्य उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी काल सुधी काढवामां आवे तो क्यारे खाली थाय! पण ते पूरा काढी शकाय नहीं. शरीरावगाहना. ६. [प्र०] हे भगवन् ! उत्पलना जीवोनी केटली मोटी शरीरावगाहना कही छे ? [उ०] हे गौतम ! जघन्य-ओछामा ओछी अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली, अने उत्कृष्ट कईक अधिक हजार योजन होय छे. शानावरणीयादि ७. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो शुं ज्ञानावरणीय कर्मना बंधक छे के अबंधक छे! [उ०] हे गौतम! तेओ ज्ञानावरणीय कर्मना बन्धक कर्मना अबंधक नथी, पण बन्धक छे. अथवा एक जीव बंधक छे अने अनेक जीवो पण बंधक छे. ए प्रमाणे यावद् अंतरायकर्म संबंधे पण जाणवू. आयुष कर्मना ब- ८.[प्र०] परन्तु आयुषकर्मना संबंधे प्रश्न करवो. [हे भगवन् ! शुं ते उत्पलना जीवो आयुषकर्मना बंधक छे के अबंधक छे ?] [उ०] हे गौतम! १ [ उत्पलनो] एक जीव बंधक छे, २ एक जीव अबंधक छे, ३ अनेक जीवो बंधक छे, ४ अनेक जीवो अबंधक छे, ५ अथवा एक बंधक अने एक अबंधक छे, ६ अथवा एक बंधक अने अनेक अबंधक छे, ७ अथवा अनेक बंधक अने एक अबंधक छे. ८ अथवा अनेक बंधक अने अनेक अबंधक छे. ए प्रमाणे ए आठ भांगा जाणवा. शानावरणीयादिक ९. प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवो ज्ञानावरणीयकर्मना वेदक छे के अवेदक छे! [उ०] हे गौतम ! तेओ अवेदक मैना वेदक. नथी, पण एक जीव वेदक छे अथवा अनेक जीवो अवेदक छे. ए प्रमाणे यावद् अंतराय कर्म सुधी जाणq. -न्धक. ३. * प्रज्ञा० पद ६५० २०४. ७.1 उत्पलने प्रारंभमां ज्यारे एकज पांदडं होय छे त्यारे तेमां एक जीव होवाथी एक जीव ज्ञानावरणीयादि कर्मनो बन्धक कहेवाय छे, परन्तु ज्यारे अनेक पांदडा थाय छे त्यारे तेमां अनेक जीवो होवाथी अनेक जीवो बन्धक कहेवाय छे.-टीका. www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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