SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शतक ८.-उद्देशक १०. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. १२३ ३३. [प्र०] जस्स णं भंते ! नाणावरणिजं तस्स मोहणिजं, जस्स मोहणिजं तस्स णाणावरणिजं? [उ०] गोयमा! जस्स नाणावरणिजं तस्स मोहणिजं सिय अत्थि, सिय नत्थि, जस्स पुण मोहणिजं तस्स णाणावरणिजं नियमं अस्थि । ३४. [प्र०] जस्स णं भंते! णाणावरणिजं तस्स आउयं ? [उ०] एवं जहा वेयणिज्जेण समं भणियं तहा आउएण वि समं भाणियचं, एवं नामेण वि, एवं गोएण वि समं; अंतराएण समं जहा दरिसणावरणिजेण समं तहेव नियमं परोप्परं भाणियवाणि । ३५. [प्र०] जस्स णं भंते ! दरिसणावरणिजं तस्स वेयणिजं, जस्स वेयणिजं तस्स दरिसणावरणिजं? [उ०] जहा णाणावरणिजं उवरिमेहिं सत्तहिं कम्मेहिं समं भणियं तहा दरिसणावरणिजं पि उवरिमेहिं छहिं कम्मेहिं समं भापियवं, जाव अंतराइएणं। ३६. [प्र०] जस्स णं भंते ! वेयणिजं तस्स मोहणिजे, जस्स मोहणिजं तस्स वेयणिजं ? [उ०] गोयमा ! जस्स वेयणिजं तस्स मोहणिजं सिय अत्थि, सिय नत्थिा जस्स पुण मोहणिज्जं तस्स वेयणिजं नियम अस्थि । ३७. प्र० जस्स णं भंते! वेयणिजं तस्स आउयं? [उ.] एवं एयाणि परोप्परं नियम, जहा आउएण समं एवं नामेण वि गोएण वि समं भाणियत्वं । ३८. [प्र०] जस्स णं भंते ! बेयणिजं तस्स अंतराइयं-पुच्छा। [उ.] गोयमा! जस्स वेयणिजं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि, सिय नत्थि; जस्स पुण अंतराइयं तस्स वेयणिजं नियम अस्थि । ३९. [प्र०] जस्स णं भंते ! मोहणिजं तस्स आउयं, जस्स णं भंते ! आउयं तस्स मोहणिजं? [उ०] गोयमा जस्स मोहणिजं तस्स आउयं नियम अत्थि, जस्स पुण आउयं तस्स पुण मोहणिजं सिय अत्थि, सिय नत्थि; एवं नाम गोयं अंतराइयं च भाणियवं। ४०. [प्र०] जस्स णं भंते ! आउयं तस्स नाम-पुच्छा । [उ.] गोयमा! दो वि परोप्परं नियम, एवं गोत्तेण वि समं भाणियच्वं । ३३. [प्र०] हे भगवन् ! जेने ज्ञानावरणीय छे तेने शुं मोहनीय छे, जेने मोहनीय छे तेने ज्ञानावरणीय छ ? [उ०] हे मानावरणीय भने गौतम ! जेने ज्ञानावरणीय छे तेने मोहनीय कर्म कदाच होय अने कदाच न होय. पण जेने मोहनीय छे तेने अवश्य ज्ञानावरणीय कर्म . संबंध होय छे.. ३४. [प्र०] हे भगवन् ! जेने ज्ञानावरणीय कर्म छे तेने शुं आयुष कर्म छे ?–इत्यादि [उ०] जेम वेदनीय कर्म साथे का तेम शानावरणीय अने आयुषनी साथे पण कहे. ए प्रमाणे नाम अने गोत्र कर्मनी साथे पण जाणवू. जेम दर्शनावरणीय साथे का तेम अन्तराय कर्म साथे " अवश्य परस्पर कहे. ३५. [प्र०] हे भगवन् ! जेने दर्शनावरणीयकर्म छे तेने शुं वेदनीय छे, जेने वेदनीय छे तेने दर्शनावरणीय छे! [उ० जेम दर्शनावरणीय अने ज्ञानावरणीय कर्म उपरना सात कर्मो साथे कर्तुं छे तेम दर्शनावरणीय कर्म पण उपरना छ कर्मो साथे कहे, अने ए प्रमाणे यावद अंत वेदनीयनो संबंध. राय कर्म साथे कहे. ३६. प्रि०] हे भगवन् ! जेने वेदनीय छे तेने शुं मोहनीय छे, जेने मोहनीय छे तेने वेदनीय छे! [उ०] हे गौतम! जेने घेदनीय भने मोर नीयनो सर्वच वेदनीय छे, तेने मोहनीय कदाच होय अने कदाच न होय. पण जेने मोहनीय छे तेने अवश्य वेदनीय छे. ३७. [प्र०] हे भगवन् ! जेने वेदनीय छे तेने शुं आयुष् कर्म होय? [उ०] ए. प्रमाणे ए बन्ने परस्पर अवश्य होय. जेम आयुष्नी साथे कयुं तेम नाम अने गोत्रनी साथे पण कहेवू.. ३८. प्र०] हे भगवन् ! जेने वेदनीय कर्म छे तेने शुं अन्तराय होय-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! जेने वेदनीय छे तेने वेदनीय भने मन्तअन्तराय कर्म कदाच होय अने कदाच न होय. पण जेने अन्तराय कर्म छे तेने अवश्य वेदनीय कर्म होय. रायनो संबंध ३९. [प्र०] हे भगवन् ! जेने मोहनीय छे तेने शुं आयुष होय, जेने आयुष छे तेने शुं मोहनीय होय! उ०] हे गौतम! जेने मोपनीय बने बामोहनीय छे तेने अवश्य आयुष् होय, जेने आयुष्य छे तेने मोहनीय कर्म कदाच होय अने कदाच न होय. ए प्रमाणे नाम, गोत्र अने अपनी प्रबंध अन्तरायकर्म कहे. ४०. [प्र०] हे भगवन् ! जेने आयुष् कर्म छे तेने नाम कर्म होय!-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! ते बन्ने परस्पर अवश्य होय, आयुष भने नामक ए प्रमाणे गोत्र साथे पण कहे. मैनो संबंध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy