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________________ ११२ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक.८-उद्देशक ९. ६३. [प्र०] आहारगसरीरप्पओगबंधे णं भंते ! किं देसबंधे सवबंधे ? [उ०] गोयमा ! देसबंधे वि सवबंधे वि।। ६४. [प्र०] आहारगसरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? [उ०] गोयमा! सवबंधे एक समयं, देसी जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । ६५. [प्र०] आहारगसरीरप्पओगबंधंतरंणं भंते ! कालओ केवञ्चिरं होइ? [उ०] गोयमा! सबंधंतरं जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं-अणंताओ उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीओं कालो, खेत्तओ अंणंता लोया-अवहपोग्गलपरियई देसूणं । एवं देसबंधंतरं पि।। ६६.०] एएसि भंते! जीवाणं आहारगसरीरस्स देसवंधगाणं, सबंधगाणं, अबंधगाण य कयरे कयरोहितो जाव विसेसाहिया वा? [उ०] गोयमा! सवत्थोवा जीवा आहारगसरीरस्स सबंधगा, देसबंधगा संखेजगुणा, अबंधगा अणंदगुणा। ६७. [प्र०] तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? [उ०] ! गोयमा पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-एगिदियतेयासरीरप्पयोगबंधे, बेइंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे, जाव पंचिंदियतेयासरीरप्पओगबंधे । ६८. [प्र०] एगिदियतेयासरीरप्पोगबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? [उ०] एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहा ओगाहणसंठाणे, जाव पजत्तासचट्ठसिद्ध अणुत्तरोववाइयकप्पातीतवेमाणियदेवपंचिदियतेयासरीरप्पओगबंधे य, अपजचासघट्टसिखअणुत्तरोववाइय० जाव बंधे य। ६९. [प्र०] तेयासरीरप्पओगबंधे णं भंते कस्स कम्मस्स उदएणं? [उ०] गोयमा! वीरिय-सजोग-सइचयाए जाप आउयं च पडुच्च तेयासरीरप्पयोगनामाए कम्मरस उदएणं तेयासरीरप्पयोगबंधे। ७०. [प्र०] तेयासरीरप्पयोगबंधे गं भंते ! किं देसबंधे, सबंधे ? [उ०] गोयमा! देसबंधे, नो सबंधे। पेशवन्ध भने सर्व- ६३. [प्र०].हे भगवन् ! आहारकशरीरप्रयोगबन्ध शुं देशबन्ध छे के सर्वबन्ध छ ? [उ०] हे गौतम! देशबन्ध पण छे, अने सर्वबन्ध पण छे. जाधारक शरीरप्र- ६४. [प्र०] हे भगवन् ! आहारकशरीरप्रयोगबन्ध कालथी क्या सुधी होय ! [उ०] हे गौतम ! तेनो सर्वबन्ध एक समय, अने योगवन्धनो काल. देशबन्ध जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त अने उत्कृष्टथी पण अंतर्मुहूर्त सुधी होय छे. अन्तर ६५. [प्र०] हे भगवन् ! आहारकशरीरना प्रयोगबन्धन अंतर कालथी केटलं होय छे! [उ०] हे गौतम ! तेना सर्वबन्धन अन्तर जघन्यथी अंतर्मुहर्त, अने उत्कृष्टथी कालनी अपेक्षाए अनंतकाल-अनंत उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी होय छे. क्षेत्रथी अनंतलोक-काइक न्यून अर्धपुद्गल परावर्त छे. ए प्रमाणे देशबन्धन अन्तर पण जाणवू. देशवन्धक, सर्ववन्धक ६६. [प्र०] हे भगवन् ! आहारकशरीरना देशबन्धक, सर्वबन्धक अने अबंधक जीवोमां कया जीवो कया जीवोथी यावद् विशेषाअने भवन्धकर्नु धिक छे ? [उ०] हे गौतम! सौथी थोडा जीवो आहारकशरीरना सर्वबंधक छे, तेथी देशबंधक संख्यात गुणा छे, अने तेथी अबन्धक अपबाव. जीवो अनन्तगुणा छे. रोजसशरीरप्रयोग ६७. [प्र०] हे भगवन् ! तैजसशरीरप्रयोगबंध केटला प्रकारनो कह्यो छे ! [उ०] हे गौतम ! पांच प्रकारनो कयो छे, ते आ प्रमाणे-१ एकेन्द्रिय तैजसशरीरप्रयोगबन्ध, २ द्वीन्द्रिय तैजसशरीरप्रयोगबन्ध, ३ त्रीन्द्रिय तैजसशरीरप्रयोगबन्ध, यावत् ५ पंचेन्द्रिय तैजसशरीरप्रयोगबन्ध. एकेन्द्रिय ६८. [प्र०] हे भगवन् ! एकेन्द्रियतैजसशरीरप्रयोगबन्ध केटला प्रकारनो कह्यो छे ! [उ०] ए अभिलापथी ए प्रमाणे जेम ( कहेवो, यावद् पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक कल्पातीत वैमानिक देवपंचेन्द्रिय तैजसशरीरप्रयोगबन्ध अने अपर्याप्तसर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक यावद् तैजसशरीरप्रयोगबन्ध छे. तेजस शरीरप्रयो- ६९. [प्र०] हे भगवन् ! तैजसशरीरप्रयोगबन्ध कया कर्मना उदयथी थाय छे ! [उ०] हे गौतम ! सवीर्यता, सयोगता अने गवन्ध कया कर्मना "RENT मा सद्रव्यताथी यावद् आयुष्यने आश्रयी तैजसशरीरप्रयोगनामकर्मना उदयथी तैजसशरीरनो प्रयोगबन्ध थाय छे. देशबन्ध के सर्वबन्धः ७०. [प्र०] हे भगवन् ! तैजसशरीरप्रयोगबन्ध छु देशबन्ध छे के सर्यबन्ध छ ! [उ०] हे गौतम ! देशबन्ध के पण सर्वबन्ध नथी. सर्वबन्ध नथी. -प्पभोगधंतरे ग-घ-छ। ६८. * प्रज्ञा० पद. २१. प. ४२६-१.पं... www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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