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________________ -nre तृतीय दशा . हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 71 इसका प्रत्युत्तर दे दूं तो सम्भवतः गुरू जी मुझे किसी कार्य में नियुक्त कर दें, अतः मौन रहना ही अच्छा है और वास्तव में मौनावलम्बन कर ले तो शिष्य को आशातना लगती है, क्योंकि इससे असत्य, विनय-भङ्ग और गुरू-वचन-परिभवादि अनेक दोष लगते हैं / इसके अतिरिक्त यदि कोई आवश्यक कार्य हो-जैसे किसी शिष्य को विसूचिका आदि रोग हो गया हो, स्थान में आग लग गई हो, कोई मदोन्मत्त, व्यभिचारी या चोर व्यक्ति अन्दर घुस गया हो या पार्श्व उद्वर्तनादि विशेष कार्य पड़ गया हो तो गुरू के बुलाने पर न जाने से अत्यन्त हानि हो सकती है | ___ यदि कोई अज्ञात रत्नाकर कलह करने की इच्छा से बुलावे तो उस समय न जाने में ही श्रेय है, अतः उस समय आज्ञा भङ्ग करने पर भी शिष्य को किसी प्रकार की आशातना नहीं होती। वचन-विषयक आशातनाओं का वर्णन कर अब सूत्रकार आहार-विषयक आशातनाएं कहते हैं: सेहे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहित्ता तं पुव्वमेव सेहतरागस्स आलोएइ पच्छा रायणियस्स आसायणा सेहस्स / / 14 / / . शैक्षोऽशनं वा पानं खादिमं वा स्वादिमं वा प्रतिगृह्य तत्पूर्वमेव शैक्षतरकस्यालोचयति पश्चाद् रात्निकस्याशातना शैक्षस्य / / 14 / / पदार्थान्वयः-सेहे-शिष्य असणं-अशन वा-अथवा पाणं-पानी वा-अथवा खाइम-खादिम वा अथवा साइम-स्वादिम वा-अथवा अन्य कोई वस्त्रादि उपकरण जो साधु के योग्य हों तं-उनको पडिगाहित्ता-लेकर पुव्वमेव-पहिले सेह-तरागस्स-शिष्य के पास आलोएइ-आलोचना कहता है पच्छा-पश्चात् रायणियस्स-रत्नाकर के पास तो सेहस्स-शिष्य को आसायणा-आशातना होती है / मूलार्थ-शिष्य अशन, पानी, खादिम, और स्वादिम को गृहस्थ से लेकर उनकी आलोचना यदि पहिले अन्य शिष्यों के पास और पश्चात् गुरू के पास करे तो उसको आशातना लगती है।
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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