SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऽङ्कः] 14 अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 209 . पिपासाक्षामकण्ठेन याचितश्चाऽम्बु पक्षिणा / नवमेघोज्झिता चाऽस्य धारा निपतिता मुखे // 33 // शकुन्तला-( राज्ञः संमुखे स्थित्वा-) अज्ज ! अद्धपदे सुमरिअ एदस्स हत्थभंसिणो मिणालवलअस्स किदे पडिणिवुत्तह्मि, कधिदं मे हिअएण-'तुए गहिदं'त्ति / ता णिक्खिव एदं, मा मं, अत्ताणञ्च मुणिअणेसुं पआसइस्सदि / [( राज्ञः संमुखे स्थित्वा-)आर्य ! अर्द्धपथे स्मृत्वा एतस्य हस्तभ्रंशिनो मृणालवलयस्य कृते प्रतिनिवृत्ताऽस्मि / कथितं मे हृदयेन-'त्वया गृहीत'मिति / तन्निक्षिपेदं / मा मामात्मानश्च मुनिजनेषु प्रकाशयिष्यति / विलापानन्तरं / प्रसादेन = प्रसन्नतया / प्रियासमागमसम्पादनरूपानुग्रहेण / दैवस्य = विधेः / उपकर्त्तव्यः = अनुग्राह्यः / तत्कृपापात्रम् / अस्मि = जातः / पिपासेति / पिपासया क्षामः कण्टो यस्य तेन-पिपासाक्षामकण्ठेन = तृष्णाक्षीणशुष्कगलबिलेन / पक्षिणा च = चातकेन तु / अम्बु = जलं / याचितं = मेघात् प्रार्थितम् / च = पुनः। नवेन मेघेन उज्झिता-नवमेघोज्झिता = अभिनवजलधरविसृष्टा / धारा = जलधारा। अस्य = पक्षिणः / मुखे = आस्ये। पतिता = प्रविष्टा / [ चकारद्वयेन प्रार्थनपतनक्रिययोरेककालिकत्वकथनात्समुच्चयालङ्कारः / अप्रस्तुतप्रशंसां केचन मन्यन्ते / // 33 // एतस्य = त्वत्करस्थितस्य / मृणालवलयस्य = बिसकङ्कणस्य / हस्तभ्रंशिनः = मडुजभ्रष्टस्य / अद्धपथे = पथोऽधैं / मार्गे एव / स्मृत्वा = विचिन्त्य / कृते = प्यास से जिसका गला सूख गया था, ऐसे चातक पक्षीने तो केवल जलकी एक बून्द हो मेघ से मांगी थी, परन्तु दैववशात् नवीन जलधर से वर्षाई गई जल की मोटी धाराही उसके मुख में आ पड़ी / अर्थात्-मैं तो प्रिया के एकबार दर्शन पाने की ही प्रार्थना कर रहा था, परन्तु यहाँ तो दैववशात् ( भाग्य की अनुकूलता से ) मेरी प्रिया स्वयं ही सामने आकर उपस्थित हो गई ! // 33 // शकुन्तला-( राजा के संमुख खड़ी होकर ) आर्य ! आधी दूर जाने के बाद मार्ग में ही याद आने पर मेरे हाथ से खिसककर गिरे हुए इस मृणालवलय को लेने के लिए ही मैं लौट कर, यहाँ फिर आई हूं। और मेरे हृदयने
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy