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________________ ऽङ्कः] 13 अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 193 उमे-णिम्वुद म। [निर्वृते स्वः]। ( शकुन्तला--हर्षे सूचयति ) / प्रियंवदा--( जनान्तिकम्- ) अणसूए ! पेक्ख पेक्ख मेहवादाहदं विभ गझे मोरों क्खणे क्खणे पञ्चाअदजीविदं पिअसहीं। [(जनान्तिकम्-) अनसूये ! प्रेक्षत्व प्रेक्षस्व मेघवाताहतामिव ग्रीष्मे मयूरी, क्षणे क्षणे प्रत्यागतजीवितां प्रियसखीम् !] / शकुन्तला--हला ! मरिसावेध लोअपालं, जं अह्महिं विस्सद्धालाविणीहि उवारादिक्कमेण भणिदं / [हला ! मर्षयतं लोकपालं-यदस्माभिर्विश्रब्धप्रलापिनीभिरुपचारातिक्रमेण भणितम् / निर्वृते = आवां सुखिते, निश्चिन्ते च जाते। सूचयति = नाटयति / जनान्तिकमिति / त्रिपताककरेणाऽन्यानपवार्याऽनसूयायै कथयतीत्यर्थः / मेघवाताहता = मेघागमशीतलपवनान्दोलितां / मयूरीमिव = बर्हिणवधूमिव / क्षणे क्षणे = प्रतिक्षणं / प्रत्यागतं जीवितं यस्याः सा, तां-प्रत्यागतजीवितां = समागतप्राणां / वातेन मेघागमाशायाः परिवद्धितत्वाद्वा प्रत्यागतप्राणता / मर्षयतं = क्षमापयतं युवां / लोकपालं दोनों सखियाँ-अब हमलोग कृतकृत्य ( सुखी ) और निश्चिन्त हो गई। [शकुन्तला-हर्ष प्रकट करतो है ] / प्रियंवदा-( अलग से अनसूया से ) हे अनसूये ! देख, देख, जैसे ग्रीष्म के संताप से सन्तप्त मयूरी, मेघ के आगमन के सूचक पवन से पुनः जीवन को प्राप्त होती है, वैसे ही हमारी यह प्रिय सखो शकुन्तला भी इस राजर्षि के आगमन से तथा इनके आश्वासनप्रद वचनों से प्रति क्षण जीवन को प्राप्त हो रही है / ( इसमें जीवन का संचार और स्वस्थता बढ़ रही है)। अर्थात्-मेघागमनसे जैसे मयूरी हर्षित होती है, वैसे ही यह शकुन्तला दुष्यन्त के आगमन से हषित हो रही है, और मानो यह पुनः नया जीवन ही प्राप्त कर रही है ! शकुन्तला-हला सखियो ! हमलोगों ने ( अर्थात् मैंने ) इन प्रजापालक
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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