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________________ 328 लोकाशाहचरिते कासां च कालेऽस्मिन् सुन्दरीणां सुसंभ्रणाहतमानसानाम् / यथा बभूवुश्च विचेष्टितानि वदाम्यहं तानि तथा च तासाम् // 28 // अर्थ-उतावली से जिनका मन आहत हो रहा है ऐसी कितनीक सन्दरियों की उस समय जो चेष्टाएं हुई. अब हम उनकी उन चेष्टाओं को उसी प्रकार से कहते हैं. // 28 // ઉતાવળને લઈ જેનું મન આઘાત પામ્યું છે, એવી કેટલીક એિની એ સમયે જે ચેષ્ટાઓ થઈ તે હવે અમે તેઓની એ ચેષ્ટાઓનેએજ રીતે જણાવી એ છીએ. ર૮ काचिच्च वामा नयनाभिरामा श्यामाऽऽगता संश्लिथकेशबन्धा / एकेन बालं च परेण वालं करेण धृता झवलोकितुं द्राक् // 29 // ... ___ अर्थ-नेत्रों को सुहावनी लगनेवाली ऐसी कोई एक जवानवामा कि जिसका केशबन्धन शिथिल था एक हाथ से अपने बालक को और दूसरे हाथ से केशों को पकडे हुए ही वहां देखने के लिये चली आई. // 29 // નેને સેહામણી લાગનારી એવી કોઈ એક યુવતી કે જેના વાળનું બંધન ઢીલું હતું, તેણીએ એક હાથે પિતાના બાળકને અને બીજા હાથથી વાળને પકડીને જ ત્યાં જાન જોવા માટે આવી પહોંચી. ર૯ : नेत्राञ्जनं यावमिति प्रबुध्य काचिच मुग्धा स्वपदे नियुज्य / उत्सृष्टलीला गतिराजगाम सत्यं विमुग्धा ह्युचितानभिज्ञा // 30 // अर्थ-किसी विमुग्धावामा ने नेत्र के अंजन को यह महावर है ऐसा समझकर अपने पैरों में लगा लिया और जल्दि से वह बरात देखने को चली आई. // 30 // કોઈ મુગ્ધા સ્ત્રીએ આંખના આંજણને મહાવરધારીને પિતાના પગોમાં લગાવી લીધું. અને જદિ જસ્ટિ તે જાનને જોવા ત્યાં આવી પહોંચી. 30 काचिच नारी स्वशिशुं विहाय स्वागे समारोप्यपरस्य बालम् / तत्कौतुकं द्रष्टुमगान्न कांचित्क्रियां विदध्यात सहसा विपश्चित् / / 31 // अर्थ-कोई एक स्त्री उतावली के कारण अपने बच्चे को छोड कर दूसरे के बच्चे को अपनी गोदी में उठाकर बरात के कौतुक को देखने के लिये चली आई. कवि कहता है कि विना विचारे समझदार प्राणी को कोई भी क्रिया नहीं करनी चाहिये // 31 //
SR No.004486
Book TitleLonkashah Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1983
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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