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________________ (47) अनुक्रमे उत्तम चंदनादिकवडे पूजा करवी उचित छे.. ... 2 चंदन पूजा-पभुना आखा अंगे उत्तम चंदन प्रमुख शीतळ पदार्थो एकठा मेळवी विलेपन कर, जोईए. आजकाल केटलाक मुग्ध भाई व्हेनो उपर मुजब अंग विलेपन करवू मुकी दइ प्रभुना अंगे पुष्कळ केशर चढावे छे. जो के चोख्खु केशर मळे तो ते बडे प्रभुना अंगे तिलक प्रमुख करवा निषेध नथी परंतु खास करीने चंदननोज मोटो भाग वापरवानो छे. अंतर लक्षथी चंदन प्रमुखना शीतल रसवडे प्रभुने विलेपन करतां भाविक आत्मा पोतानेज कषाय तापथी मुक्त करी शीतळ करी शके छे. प्रभुना आलंवनथी पोतेज शीतळ बने छे एटले राग द्वेष रुप कषाय तापयी मुकाई शांत थाय छे. 3 कुसुम (पुष्प ) पूना-उत्तम प्रकारनां तानां खुशबोदार खोलेला अखंड फुलोवडे प्रभु पूजा करनार प्रभुना आलंबने चितनी प्रसन्नता प्राप्त करी शके छे. काची कळीओ के नहिं उघडेलां तेमन वासी अने जीवाकुल पुष्पो प्रभुने चढावा योग्य नथी. थोडां के घणां उत्तम जातना फुलवडेन प्रभु पूजा करवी उचित छ. शास्त्र नीति अनुसारे फुलने किलामना न उपजे तेम पुष्पमालाओ, पुष्पगृह के पुष्पना पगर भरवादिक बढे पण प्रभु पूजा कराय छे. केटलाक भोग लोको शास्त्र नीतिने बाजु मुकी फुलने सोयथी घोचीने पुष्पमाला तैयार करावी ले
SR No.004476
Book TitleDevdravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sakarchandji
PublisherMohanlal Sakarchandji
Publication Year1917
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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