________________ स प्राह परिहासोऽयं, विहितः खेदशान्तये / / ममा प्रहरी लग्नस्तवैवार्थं प्रकुर्वतः / // 444 // आस्ते मलयमञ्जर्या, मनोविश्रम्भभाजनम् / प्रगल्भा मत्परिचिता, वृद्धवेश्या कपिञ्जला // 445 // गृहे प्रविश्य शयनात्, प्रागेवोत्तिष्ठतो मम / वयस्य रक्षरक्षेति, प्रकामं पूच्चकार सा // 446 // ससंभ्रमं मया प्रोक्तं, कुतो भीस्ते कपिञ्जले ! / सा प्राह मित्र ! कन्दर्पाद् दर्पाद् दलयतो जगत् // 447 // अश्रद्धाय वचस्तच्च, मयोपहसितं तदा।. . कुङ्कुमापिङ्गपलितचिताज्वालालिभासुरम् // 448 // भीष्मं शब्दायमानास्थिपञ्जरोरुशिवारवैः / उल्लम्बितशबाकारलुलितस्तनमण्डलम् // 449 // महास्मशानतुल्यं ते, वपुर्वीक्ष्य पलायते / नितान्तं कातरः कामः, कुतस्तव ततो भयम् (त्रिभिर्विशेषकम्) // 450 // सा जगौ मे त्वया भावो, दुर्विदग्ध ! न लक्षितः / स्वामिन्यास्तनया मेऽस्ति, कन्या कनकमञ्जरी // 451 // निर्दयं सा च कामेन, वराकी पीड्यतेऽधुना / या भीस्तस्यास्तत: सैव, मय्यारोप्य निवेदितां // 452 // मयोक्तं किंनिमित्तोऽसौ, तस्याः स मदनज्वरः / सा प्राह तस्या जातोऽसौ, नन्दिवर्धनदर्शनात् // 453 // सुधामग्नेव दृष्टाऽसौ, पश्यन्ती नन्दिवर्धनम् / तस्मिन् दृष्टिपथातीते, विषमग्नेव चाजनि // 454 // ज्ञात्वा मलयमञ्जर्या, तामकस्माज्ज्वरातुराम् / उपचाराः कृताः शीतास्तालवृन्तानिलादिभिः // 455 // . 104