________________ // 8 // // 9 // // 10 // // 11 // सज्झायनियमकरणं अपुव्वपढणं च उचियसमयम्मि / किच्चं निच्चं पि तहा जहजुग्गमभिग्गहग्गहणं जिणसु कसायपिसाए पसिद्धसिद्धंतमंतजावेण / उवसमयसु विसयतिसं संवेगामयरसं पाउं बहु लोएण वि निदियमिदियपसरं निरंभसु अमग्गे / पडिवज्जसु य जहारिहमागमविहिणा गिहिवयाई सुहिसंबंधो बंधो बंधुजणा हियविबंधगा धणियं / पासो अगारवासो असंखदुक्खावहा कामा ही चवलं देहबलं ही लोलं जुव्वणं च जीयं च / थू अथिरं विसयसुहं हद्धी रिद्धीउ चवलाउ सुहसाहणमिह दुलह सुलहं दुहसाहणं चिय जियाणं / जं ता परिहरियव्वो अव्वो सव्वो वि एस भवो सव्वे सकज्जकंखी सव्वे सकडोवभोगिणो जीवा / को कस्स इत्थ सयणो ममत्त इह बंधहेतु त्ति इय चिंतिय नियहियए दुल्लहलंभं च जिणमयं नाउं / विरसावसाणभववासनासणं कुणसु वयणमिणं // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // अष्टमं कुलकम् / पुवकयकम्मजणिओ दुरंतचउगइदुहावहो, एस। ही विसमो भववाही देहीणं दुन्निवारो य इमिणा किलिस्सिऊणं सुइरं चुलसीतिजोणिलक्खेसु / जुगसमिलाजोगसमं लहिउं कह कह वि मणुयत्तं सव्वन्नुसव्वदंसीहिं दंसियं सव्वभव्वबंधूहिं / सव्वाहिवाहिहरणं सम्मं धम्मोसहं कुणह 193 // 2 // // 3 //